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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधुभदिन नाम--- १) संवेवासुंदर उपाध्याय । अंथ—सार सिस्वामनरासा । दालु---११४८ ।। शिक्र—वश्यच्छ के जयसुंदर सूरि के शिष्य थे । नाम---- } रास चंद्र सूरि । ग्रंथ-मुनि त राजर्षि-चरित् । इञ्चल --$१५० । इथे संवत् पनर पचास झारिए । ददि बैसाख मास मल अछि । • दिन सप्तमी रचिट' बिंबार । भनाई सुइ तिह हुई अयार । १ ४८ अनंतदास { १५५१७ ) रैदास के कुछ ही पीछे हुए । अंथ इनके ये हैं- १ ) रैदास की पुरवई,{ ३ } बीरदास की याचई र ( ३ } त्रिलोचनदास की एरिथई । “क्ता हन श्रेझीं की है। इसी नाम के शुक और अनंत- दास हुए हैं। उन्होंने भी ग्रंथ बनाए हैं । शायद यह अनंतदास उद, अनंतदास से भिम हाँ । उनका समय १६५७ हैं। . दाम- ४६ } भाचार्य स्वामी महाप्रभु ।। अंथ--१ भागवतपुराण सुधिनभाष्य, ३ जैमिनीसूत्रभरून्य, ३ अनुष्य, } दियद, १ जनयात्रा ( हूँ }। विशाल----१६६० ।, हवेत -११६* तक। दिएमा---ये अशा वल्लमीचे संप्रदाय के संस्थापक महान् ऋषिं हो गए हैं। ये संस्कृत के बड़े धुरंधर पंडित और सुकवि थे। झाएँ इभीथ वैव-संप्रदाय में श्रीकृष्णजी के अवतार माने जाते हैं और आपकी पुजा देवताओं के समान अथ तक होती है। आपके