पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२६५

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आदिअझरना नाडु संस्कृत के बहुत-से ग्रंथ हैं। भाषा में भी कुछ उत्तम पर्यों की रचना आपने की है । भाषा-कविता-भेदार अप ही के शिष्य की रचना से परिपूर्ण हुँअर है और उसकी उत्तेजना देनेवाले यही महा- पुरुष थे। आपकी कविता शुद्ध प्रजभाषा में हैं ! ब्रजभाषा का जो -कविता पर साम्राज्य-सा हो गया है इसका एक आधार कारण अह मी हैं कि आपके संप्रदायवालों ने अपनी पूरी रघुना इसी में ॐ है। महारुमा सूरदास तथा अष्टछाप के अन्य कृविगण की रन्छन् ब्रजभाषा की भूषा-स्वरूप है । यदि भाय-काव्य को आपके संप्रदाय द्वारा इतना सहारा न मिली होती, छो आज शायद ब्रज- या की कविता इतनी परिपूर्ण न होती है यह सब महात्मा बल्लभ चार्य ही का प्रलाप है कि हिंदी कविता की ओर ऋषिदत् साधु लोह भ झुक पढे । बाबु राधाकृष्छदास ने लिखा है कि अपने रघना नहीं की और इस नाम के पद इसी नाम के शुक अन्य कवि के थे। | १५० } कुतखन शेत्र में याक्ती ग्रंथ संदद १५६० में बनाया है ॐ महाशय शेट्स बुरहान चिश्ती के चेले थे और शेरशाह सूर के वित हुसैनशाह के यहाँ रहते थे । इन्होंने भी पद्मावती की भाँति दोहा-चौपाइयों में रचना की है। इनकी गणना साधारण केही : उदाहरण- सद्ध हुसैन अहै बड़ राहा ! छत्र सिंघासन उनको छाजा । • इंडित औ बुधिक्त सयाना } पर्दै पुरान अरथ सब जाना । इम दुदिस्टिल उदो छ । इभ सिर छह जो जग्जा । दाद देg औ बनत न बै; बात औ करने में सररे पावै । सरोकार ने {१} सेन वि का समय १५६० लिखा है। और यह कहा है कि इनके छेद काफलदास-कृत इज़रा-नामक संग्रह