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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-घिनोद

  • मिलते हैं। सैन के सम्र के विषय में कुछ निश्चय नहीं है,

कैदज्ञ इतन्या ज्ञात है कि ये महाज्ञय कालिदास के प्रथम थे । कार्ति दाल औरंगज़ेब के समय में हुए हैं। सेन की कृतिः उस्त और आधा दर्तमान समय -सी हैं । उद्दाइ-- । अझ ते पाळ, मधुझ्द के सारे आली | मधुबन भयः मई दानद बिक्म हो । कैद कह सर्किः स्तिखंडी खंजरीट सुङ | मिलिंकै कुछ झनो अलिंदी कदम हो । जमिनी बरन यह जामिनी मैं ज़म-ज्ञास दधिक की कुति जनाउँ टोरि तम सौ ! हु केरै करज्ञ जो लियो चाइति । । .. कार भई यलु कृपायों रै हम । .. अ पूर्व माध्यमिक-हिंदी का समय समाप्त हुआ और इसके ". प्रष्ट माध्यमिक वाले केगा । इस पूर्व काल में दियायति | अकुर एवं कबीर-जैसे महाकवियों ने हिंदी का सुख उज्ज्वल करके . उसे एक वास्तविक स्दच्छंद्र झा बना दिया और महात्मा रामा- नंह, छाला नाक और महाप्रभु वल्लभाचार्य-जैसे महात्माओं ने भी इसमें रचना करनी श्रावश्यक समी। जैसे ही प्रसिद्ध मइन्कार कुंभकर्ण ने भी स्वयं इसमें ऋविता की और अनेक कवियों को अश्क दिया । यह महानुभाव हिंदी का प्रथम टीकाकार हो गया है । अव हिंदी-साहित्य का साम्राज्य इतना फैल गया था कि पंजाब ' से लेकर बिहार तक उसकी ध्वजा फहराने लगी । राजाओं के कर कतैनाली प्रथा अब दिलकृद्ध टूट गई और धार्मिक साहित्य की अह अह इढ़ चढ़ा है इस काल के कदि में अधिकांश संख्या शर्मिक कामों और इनके अनुयायियों ही की निकलेगी । उधर