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मिश्रबंधु-विनोंद

मिलबंधु-हिौद पटकन बाँस कास कुस टक्कत हटकत तालतमाख । उचटत अति अंगार फुटत झर झपटत ज्ञपट कुरा इस धुंध बाढ़ी धर अंबर त बिच-बिच वाल । इरिन बेराह मोर चालक पिक जस्त जीध बेहाल । अनि जिय दरहू वैन मॅनड्डु सब हँसि बोले गोपाल । सूर अलव्ह सब बदन स्मानी अभय के बदछ । देलु सुन सुंदरता को सागर । .: बुधि बिबेक अत पार न पावत मगन होत मन नागर । तनु अति स्याम अगाध अंबुनिधि कटि पट पीत तरंग ; चितवत चलत अधिक रुचि उपजत भंवर परत सत्र अंग । नैन मीन महराकृत कुंडल भुजबल सुभग भुजंग } : मुकुट माह मिल मानहु सुरसरि दोय सरित स्त्रिय संग ।। मोर मुकुट मनि नग आभूषन ईट किंकिन नत्र चंद् ।' मनु अडेढ़ शारिधि मैं बिंबित को उड़गद बूंद ।। बन्द चंद मंडल की सोभा अवलोकन सुस्के देत । जन जलनिधि माथि प्रकट कियोससि श्री अरु सुधा समेत। देखि सरूप अमङ गोपीजन रही मिर-बिचारं ; सदपि सूर तुरि सबै न झोझ रही प्रेम रचि हारि । " श्याम कर मुरलँ। अतिहिं विराजत } . युएस्त अक्षर सुधारस प्रति मधुर-मधुर सुर बाजन ।। लश्कल मुकुट भौंह ऋदि मटकत नैन-संन अति छाजत । प्रद नवार अटक बंसी पर क्रोटि मदन कुदि लाजत । खोड अपोल सक-कुंडल यह उपमा कछु जापत ६ र श्र सुधार की अपु-आषु अनुरांत । छैन हिरट नैद नंदन थारू दुकान सँत सोहत । कुसूर अनु की कृछि निरञ्जले सुर नर मुनि मन मोहः ।