पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२७७

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प्रौढ़ माध्यमिक-प्रकर

हरि झुल निरसन नैन मुलाने हैं ।

शु, अधुकर संच पंझज़ हमी नाही ते न उड़ाने । कुंडल मकर कोहन के ढिं मनु रङि वैन बिहान ; ध्रुब सुंदर नैननि गनि निरखत खंजर बन जाने । अरून अवज कोटि बज्र टुतिं मुगिनं रूष समाने। . कुंचित अलक सिलीमुख सानहुँ है मकरंद निदाने । नेहरू ललाट कंठ मुक्तावलि भूवनमय सनि खाने । सूरदास स्वामी अंम् नादर हे गुन जात न जाने । । प्रिया कुछ दे श्याम निहरि ; ..... कहि न जाय अानन की शोभा रही बिछर बिचारि । छरोदक धुंबट हातो र सनसुख दियो उधार ; . मनहूँ, सुधाकर छीरसिंधु हैं अट्यो कलंक पर । झुकनः महरा र पर सोभित राज अह अकारि .. भानहु उद्धरान उनि दल सरि अाएकरन जुहार । : । साह छह सिंदूर बिंदु पर मृगमद् दिगो सुबई १ .

  • बँधृक झुसुम ऊपर अलि बैठे पंख पसारे।

चंचल नैन चहूं दिखे चिढबत जुग कंन अनुहार नहुँ प्ररथर. करत र झरि बचाई. । । । केसरि के मुकढा मैं ई इन दिरात' छात्रि । . नई सुरगुरु सुरू म.सने जमकत कैद मकरे ? ... अवर बिंब दसन्तान की सभा दुसि दामिनि भकारि ६ . किबिंदु बिच दिय विधाता रूप खींव निवार। हेति पुंछ पटतर करने को दी कई अनुहार. । ज्नु शुरु भानु दुहुँ दिलि उगए दुरि ग पार ।। | ; खस्छ सु आज हार कुमंडल सखिकन गुडी सुद्धादि । . | .:. ..मनु दिसि निरधुम अदिति की बैठे त्रिपुर..