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मिश्रबंधु-विनोंद

मिथबंधुदिनोद सनमुक द्वीङि परे मनमोहन खत भई सुकुमारि । लीन्ही इगि उय अंक भरे सूरदस बजहर। | स्क्यिल' छु दिसि से धन घरे ; .. मानङ्क मच, मन के हथियन अल करि बंधन तोडे । श्यम्म सुक्ष्म तन मुक्त गंडमद् बरसत थे-थोरे । स्त न प्रौन महावत हू है मुरत न अंकुस ब्योरे है। पल बल अळ विकसि नैन जल कुकंचुकि बंद रहे। मदा निकलि बगत दंत उर अवधि सरोवर झोरे ।। तथ हेहि समय पनि ऐरावत ब्रजपतं सा कर जारे । अब सुनि सूर कान्ह केहर दिन बरत गत जिमि श्रीरे। नाम---१६) ईश्वर सृदि जैन । ग्रंथ--ललितांत्रि !.. .... विश्-शांति सूर के शिष्य थे । .. .। उदाह -- ... आलंकार .समत्थं सरग्छंदं सरस सुगुरू संजुलं हैं । ज्ञात शंका कुसर चरियं ललखा लाल यव निसुरिह। महि महदि मालव देस ! या कख्य लछि निवेस । सिंह' नायर भइव दुग । अहे नवड जाणकि सभा है। क्त्र र विलास उदोक्ष ; नवगाह गेय कलोल । | निज कुद्धिं बहुअ बिनाt | गुरु धम्म फल हु क्राणि । । | इस पुण्य चर्किय प्रबंध * लछि अंग नृय संबंध ; . | पहुं पास छरिङ क्ति } उद्धृश्य मुह स्वस्त । ... . १ ५३) कृष्णूदास : : : | वे हा भाचार्यजी के शिष्य थे | अक्रे; कोई अं% इमने की छे, परंतु ३०४ पद हससे पास वर्तमान हैं। इन्होंने