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मिश्रबंधु-विनोंद

हैं।

मिश्रबंधु-विनोद ।

. अद्भुत सत्टदल विकसित कोमल मुकुलित कुमुद कछार ६ . . .. मला पवन दह सारड़ पूरल चंद मधुप *कार ! | सुबर राय संगीत कमिछि महुल नंदकुमार ': अंजमिन सँग प्रमुदित नाचत तम अचित धार. • उन स्वरूप सुभगत सर्व को सुख सर । कृष्छदास मन्त्री निरिक्षर पित्र पहिरे रस में इर।। नाम--- ५३ } अग्रेस अध्। - त्रिवश्–जोधपुर के राजा वीर भानु के श्राश्रिन्द थे । ( ५४ } परमानंददास ये महा: कान्यकुब्ज ब्राझ ञ के इहवाल थे । इन भी एनए अष्टछाप में थी । गे हाराज श्रीस्वामी वाई के शिष्य थे। इनकी कविता बहुत मनोरंजक बनती थी । आपने छान्नञ्चम्रि और गोपियों के डेम का बहुत वर्णन किया है । इनका एक पद खड़ी ही में भी हमने देखा है । इनका एक हुश्रा एक ग्रंथः परमानंदसर इमाई सुनने में छाया है और इनके स्फुट छैद बहुत-से यत्र-तत्र थारू जाते हैं। इन मूक पद सुनकर छक्कभाभी एक बार ऐसे प्रेमान्त हो गए कि कई दिन तक हासंघान-हित रहे। इससे एवं छंद्र के पद से विदेह हता है कि इनमें तीनदा का गुण सूद था । इनके बनाए हुए

  • दरम्यानन्ददासजी का पद और दानशाखा” १६०२ की खोज में मिले

हैं। इनका समय १६ ०६ ॐ खगभंग धर } १० चै० खोज में इनकः शुक्ल अंथ श्रुध-सरित और सिद्ध है। चौरासी वैष्णर्यों की बातों में और अफ्झद वन किया अइया है । इम इनको सोष कविं की श्रेणी