पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

प्रौढ़ माध्यमिक प्रकरण के पुत्र ४, सो इनका रचन-काल ११६.० ठीक नहीं माना जा सऊदा है। संभव है कि यह ग्रंथ किसी दूसरे तुर्भुजदास का हो । हल्लज़ को मंगह-वामक इक्का दुङ र ग्रंथ छेत्र में मिला है। उदाइरए- जसोदा कक्षा की हैं या ; ... मुहरै सुरु के करतब मोपे करून हे नहिं जान । |भाजन झोरि डोरि सत्र गोरस लै माखन दछि स्वात ; जे; जें तौ प्रॉखि देखावें रहु नाईि सकात् । और अटपटी क्र . बरन छुद यानि से गात ; दास चतुर्भुज गिरिधर गुन ही अति इति इकुते । | ( ५७ ) छीतस्वामी । • अक्षाराज गोस्वामी बिट्ठलनाथजी के शिष्य थे । इनकी भी नाः अष्टछाप में हैं । ये महाशय मथुरैया पंडा थे और जा बीरबल इनकें यजमाने थे। पहले ये बड़े गुंडे थे, पर, स्वामी बिटुल्दनाथ के दर्शन र पुर्ख भन्न हो गए। इनकी समय १६३३ के लगभग था। अापका नेई अंथ हमारें देखने में नहीं आया, परंतु स्फुट छैद ३४ हमारे पास दर्तमान हैं । वहा के हिन्छर में हम इन्हें सुधार अंसह में रखेंगे। इनका अन्य २१२ ईच्छों के काल में है ? भोर भई नव कुंज सदन ते अविल लाल गोबर्द्धन ? ; खटपट फल मरगी माला सिथिल अंग म्मम.गद्धि न्यारी । क्नुि र मह बिराजंत दर पर न झुठ ईङ चंद अनुहारी । ज्वन्दिम्यामिः जब चितए मो तन तथं झै निराई गई बलिङ्गानी । | ( ५८ ) नंददास । ये महाराज किसी तुलसीदरसज़ी के भाई थे। इन्होंने १६२३ ॐ स्वय-