पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२८५

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औद माध्यमिक प्रकरण । सुभग सरित के तीर धीर बदल इंडेर गए ठहूँ । होमल मलय समीर छबिन को महा भग्न जहूँ । । कुसुम बुर धुंधरी कुंज छछि पुंजनि छाई । . गुंजत मैजु, अलिंद बेनु जनु अनि सोहाई । ।

  • इत महकत मालती सारु चंपक चित घोर : ।

उत घनसारु तुसारु मलय मंदारु कोरत । नव मर्कत-मनि स्याम कनक मन अय प्रजबाला ;.. | वृंदावन गुन संकि मछु पहिराई माला ।। . इन कविता के विषय में कहावत प्रसिद्ध है कि और सब बकृया, नंददास जहिया, अर्थात् अर सुब व गहने गढ़ते थे, पर दंइद्रास उन्हें बढ़ते थे, अर्थात् पञ्चीकारी म महीन काम नंददास ही के आ पड़ा था । इनकम युक य-अंथ भी छत्रपुर में हमने देखा है । यह विज्ञानार्थप्रकाशका-मामक संस्कृत-ग्रंथ झी ब्रजभाषा. में टौका है । इसके अतिरिङ नासकेतपुरा का भाषानुवाद गद्य में इन्होने किया है, जैसा %ि ऊपर ल्लिया गया है। हते हैं कि मथुरचाहे व्यास के अग्रह से इन्होंने रासपंचाध्यायी से इतर अपनी भागवत-कावता यमुनाजी में डुः दी । श्यासों को यह भय हुआ था कि भाषा भोगत सभी पढ़ , जिससे उनकी संस्कृत भाषा में कश्राओं का माहात्म्य ह जायगा । (५६) गोविंदस्वामी । में मशः अंतरी के रहनेवाले सनाढ्य ब्राह्मण थे बहाँ के अाकर ये मोबन में रहे और लोगों को शिष्य करते रहे। अंत में ये स्वयं स्वामी विट्ठलनाथजी के शिष्य हो गए और तब से मौवर्द्धन अर श्रीनाथ की सेका में रहने लगे। ये कवि होने के अतिरिक्र गाल- विद्या में बहुत निपुण थे. और तानसेन भी इनके गाने से मोहित हो जाते थे। इनकी कवेता केवद्ध अच्छे गवैए ही गा सकते हैं ।