पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२८७

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प्रौढ़ माध्यमिक कन्या गई प्रवाह व्यास मिश्र के पुत्र थे। इनके पिता का उपनाम हरि- म मिश्च तथा माता का नाम द्वारा रानी छ । हरेर्दशजी का जन्म मिहीं बैसाख-अदी १६ संदत् ११३० का था । इनके क्मिणी-नाझी क्री में तीन पुत्र र एक कन्या हुई । फिर ये महाशक श्रृंदावन पहुँचे और इह र्तिक शुक्ल तेरास संवत् ११३६३ को इन्हें श्री- राधावल्लभजी की मूर्ति स्थापित ी ३ इन सदनों का हाल इनके मेयाय में विदित है । इनके शिष्यों में ध्रुवदास के होने से हमें इमके समय के विषय में प्रथम भ्रम हो गया था, पर शीर्छ जान पढ़ा कि संद, ३६४० के लगभग जन्म पानेवाले भुवदास इनके झिथ तीसरे पुत्र गोपीनाथ ॐ स्वप्न द्वार हुए थे । हिजी ने स्त्र में राधाजी से संत्र पाया और तब से अब उन्हीं के शिष्य . हरे गए। ' थे भाशये अनन्य ( राधावल्लभाय) संप्रदाय के संस्थापक थे। आई मत एम ग्रसिद्ध है और लाखो मनुष्य अब भी इसे संप्रदाय में हैं। कितने ही बड़े-बड़े भक इनके शिष्य थे ! इनके वंशों की एक भारी गद्दी है और दमक-संतानों की भांति वे भी भूजे जाते हैं। इनके शिष्य सेवकजू अच्छे कवि थे । स्वामीजी के कुल घर पुत्र थे । ये महाशय बड़े भक्त थे और इन जीवन बड़ी ही पुनीत था ? ये संस्कृत और भाषा के कवि थे। संस्कृत में इन्हें आधा- सुधानि४ि-नहसंक्ल २७० श्लोकों का अंध बनायो । भाषा में अपने ८४ पद कहे जिनके संग्रह का काम शिजी ने 'हित चौरास धाम' लिखा है और हमारे पास वर प्रेमलता' नामक पुस्तक के दाम में वर्तमान है। बाबू राधाकृष्यदास ने लिखा हैं कि उन्होंने इन ८४ डों के अतिरिक्क कुछ और भी इनके पद देते हैं। अपि ये महाशय संस्कृष के भी कवि थे, तथापि इनकी अष-कविता में श्राव्यवहृत प्रत्यः एक भी संस्कृत का पद अथवा श्रुति-ऋटु शब्द नहीं