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मिश्रबंधु-विनोंद

। मिश्रबंधु-विनोद श्राने या है। इनकी भांश बड़ी ही मृदुख और सुलु है । इन्होंने : अनुग्रास, अनादि का आदर नहीं किया है। फिर भी इनकी भाषा परम भनोहर है। गोस्वामीजी ने इन थोड़े-से पर्यों में ही अपनी पृ कत्शिक्लि का परिचय दे दिया है। इन्होंने संगीत और क्राज्य, टोनी का अश्छा स्वरूप दिखाया हैं । इन महाराज द्वारा नख-शिव | का इन कहीं-कहीं एक-ही-पाक यद में विजण प्रकार से दिखा विद्या मला है और उपमार्दै भी अच्छी-अच्छी दी गई हैं। गोस्वामी .. को संवन बड़ा ही विशद हैं। उत्तम पद की मात्रा इनकी . • कविता में विशेष हैं और बहू बहुत अदरखीय हैं। इन्हे पढ़ चढे । मेभीर हैं। हम इन्हें सेनापति ॐ श्रेण्डी में खड़े हैं। ये महाशय . काव्यरसिकता के कार काव्य नहीं करते थे, वरन् इन्होंने अक्किप्रसु- . रता के कारण ऐसा किया है। कृविता इनके पवित्र जीवन का एक अंश-मात्र श्री और ये इसी कारण कविता करदे थे कि क्ह इनकी भक्तिमार्ग में सहायक थीं } इन महाश्य ने भक्रियाङ्कत के कारथ

  • श्रीकृष्णचंद्र के विषय में अंसार-कविता भी की है। खोज में

इस्म एक ग्रंथ स्फुट नाम का मिला है। इनकी अवता से कुछ पद ईंचे लिखे जाते हैं रागदेइंगधार ... . . . अज नव वरुण कदंत्र मुकुट मरिण श्यामा आजु बनी ' ..' नंस्व शिख ल ग अंग माधुरी भौहे श्याम घनी । य राजत कब चूँथित कृच अनेक कंॐ बदन ।' .: सिर चंद्रिकन दीच अन्ध बिंधु मानहुँ ग्रसंत नी ।

  • भने उस सिंर अत पसरी पिय सीमंत उनी ।

... भकुटि काम को देद नैन सर काले रेख अनी । एवं हिलक तार्दैछ छ में या जलजें मंत्री । | "दुसन कुंद संसाधरं पश्य तम मन ससनीं ।'