पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२८९

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लिवुङ मध्यद अति वा सहॐ ऋखि अढ़ बिंदु कला ; पनि प्रान इसने संपुट कुछ कंचुकि कांसत वर्ना । झु बृन्दा झन्हें हर सद्भुत रस सरस अर्न श्याम सीन्स तरु मनु भिड़वारी री धम् श्वनी ! झा* मीर मीन मोहन मुह स्वस्हन् ॐ हृदुभी । कृश कांटे पृधु निन्छ नि त दहि स्वंभ धनी । द अंबुज ज्ञावकयुत भुष्य नुर उर अबना । . हम न भाय मिळभ भन्म इ. विरह वर करनी । श्तिहरू अस्थत स्यामः कीरति दिदै, अर्जः । अचल स्वनि सुनत सुदुर बिस्छ दुरित दवः ।

राई सारं. .. चलट्टि किन अनिनि कुंज-कुटीर, ६ ..... न्य विन कुँवर टि अनिता झुले सशस्त मद्धब की पंर १: ...। गद्बाद सुर बिरहाकुल पुलकित श्रम बिड़चन नीर । . क्वास कासि बृषभानुबंदिनी बिलपत बिपन्न अधीर ।। ईसी बिसिव व्या मालावल्लि पंचान्दन पिक कर । मलयज रद्ध हुतापम मारुत सेवामृग . रिपुर्धर ।। हित हरिबंस परम कोमल चिंत रह चलो पिय तरि ।। सुनि' अथ भीती अञ्ज को पिंजर सुन सूर उमरेर । | अबु देन बीको रास नायो । ....... ... .. . पुलिन्द पायंत्र सुभम अनुनतः मोन येनु थायो । का अंकन किंनि नूपुर धुनिक सुन्नि रूम सुई सन्तुषायो । फुले मंल मध्य श्यामधर साग या जमायो । हाल ऋण उफंग कुज कुछ अलि साधुः अढायो । थियभर विंसद छूपाननंदिनी अंदा सुरांध दिया है । ऑभनय जिदपुर खट खट होवन लुटि नंबर यायो । .. .