पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२९१

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प्रद माध्यमिक-प्रकरण ३५५ ओम-दस का दर्शन झरहे हैं, वस्तु मैंने दोहा में इस कार 1ला छि उसमें थोड़े ही अक्षरों में बहुत अर्थ आ जाता है । इस कम से अट होता है कि उस समुत्र बहुत-से कवि थे, परंतु दु:ग्य-वर उनके भ्रंथ श्रई नहीं मिलते। रीति में लोय केशवदाह को प्रथम झाचार्ख समझते हैं, परंतु रस-रीति के प्रथम आन्दर्य कृपारास ही उइ । इम इनकी गवाना तोच # श्रेर्स में करते हैं। सिधि निधि सिव मुख चंद्र लाल धि शुद्ध तृतियाम् । हितवरंदिनी रहीं अदि हित परम प्रकास । रक्त कृषि सिंगर इस छेद बड़े विस्तार मैं वरन् दोहानि क्वि ते सुधर बिचरे । .:. लोचन एल कटाच्छ सर अक्यिारे ब्रिा पूरे । मन मुग बेचें मुनिन के जग जन सहित क्रि । ". अजु सवरे हैं गई नंदलाल हित ताल । कुमुद कुमुदिनी के भट्ट निरखे औरै छ । पति अायो फ्रठेस ते ऋतु वसंत की मानि ।। झमकि-झामकि निज महल में टहलै करै सुरानि । इस कवि के पद कहीं-कहीं बिहारीलाल से मिल जाते हैं, जिससे यह भी संदेह किया जा सकता है कि यह कवि बिहनी से पीछे हुआ, परंतु अन्य प्रमों के अभाव में इसके अंश का ठीक संवत् अमयिक नहीं माना जा सकता और यही कहना पड़ेगा कि या तो बेहा ने इसकी चोरी की या द दैवात् मिखे गए। . १ ६२ ) मलिक मोहम्मद जाय : । इन्होंने अकरावट और पाकत-लाम'दो अंथ बनाए, जो हमारे इस प्रस्तुत हैं । अशक्ट में इन्होंने सन् संवत् का कुछ ब्योरा नहीं हिषर है, परंतु राह में वह लिखा है कि वह सन् ३७ हिजरी में रंत की गई जो बत् ११३ में अछूतर है, परंतु उस समय के