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मिश्रबंधु-विनोंद

२४६ . मिश्रबंधु-विनोद यादशाह का नाम इन्होंने यों कहा है कि "सेट्साह दिल्ली सुल- सानू । चारिड और तरा उस भानू ।" बादशाह के नाम जिस्मन की यह आवश्यकता पड़ी कि फारसी-नियमानुसार अंध बनाने में ख़ुदा, रसूल और नलीकाओं की स्तुति करके उस समय के बादशाह की भी तारत की आती है । शेरशाह संवत् १५६६ में गड़ी पर बैठा था और संवत् १६०० में उसका देहांत हुश्रा। इस हिसाब से २२-२३ साल का बडबड दीखता है । आन पड़ता है कि जायसी ने कथा बनाना संक्ट १५७५ में प्रारंभ कर दिया था और फिर अंध समाप्त हुई जाने पर शेरशाह के समय में उसकी वंदना बनाई। उसके प्रभाव के अधिक्य से जान पड़ता है कि यह ग्रंथ शेरशाह के अंतिम संवत में समाप्त हुा । खोज सन् १९०३ से पदावत के रचनाकाल ११६५ श्राता है ! कदाचिन इस अंतर का कारमा सन् १२७ हिजरी-विषयक पाट-भेद है । हमारी प्रति में रचनाकाल सन् १२७ हिजरी है । पञ्चायत में लिखा है कि “जायस नगर धरम अस्थान । तहाँ पाय कधि कन्दि बखानू ।” जायस अवध-देश के जिला-हायबरेली का एक प्रसिद्ध कस्दा और रेलवे स्टेशन है। इसमें गुम्मनमान बहुतायत से रहते हैं। पूर्वोक चौपाई से विदित होना है कि जायस इस कवि का जन्मस्थान न था, किंतु निवासस्थान या। महामहोपाध्याय पं० सुधाकरजी द्विवेदी ने इनके ग्रंथों पर विशेषतया श्रम किया और पद्मावत को श्रापने शिष्यसी सहित प्रकाशित किया है । अापने लिखा है कि बहुत लोग जायसी का जन्म-स्थान हाजीपुर मारते हैं। हादपी ने अपने को काला .' लिखा है और यूसुफ मलिक, सालार कादिम, मियाँ सहोने और रख साई नामक धार पनियों को रुपन्दप मिश्र और संपाद प्रसारक को अपका पनि कराया है। इन्होंने यह भी लिखा है कि सोय कुरुकम होने के कारस्यक्ष इनको हँसा करते थे। इन्होंने कासें खलीफाओं .