पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/२९५

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प्रौढ़ माध्यमिक हो गई। इसके पीछे बादशाह ने फिर चित्तौर बेरा, जिसमें बादल भी बड़ी शूरता से लड़कर मर गया । पद्मावत में २६७ पृष्ठ हैं। इस ग्रंथ की कथा मनगढंत नहीं है वरन् सिवा दो-एक छोटी-छोटी ब्रहों के और सब इतिहास से मिझती हैं। | इस बृहद् ग्रंथ में स्तुति, राजा-रानी, नखशिख, घट्ऋतु, बारह- भन्सा, ज्योतिष, स्त्रियों की जाति, राग-रागिनी, रसोई, दुर्ग, फ़क़ीर, प्रेम, युद्ध, दुख, सुख, राजनीति, विवाह, बुढ़ापा, मृत्यु, समुद्र, राजमंदिर अदि सभी विषयों के वर्णन हैं और प्रत्येक विषय को जय ने उत्तम रीति से और बड़े विस्तार-पूर्वक कहा है। इतने सिन्न-भिन्न विषयों को समुचित प्रकार से सफलतापूर्वक कहना किसी साधारह कवि का काम नहीं है। महर्षि वाल्मीकि का यह बैग था कि वे जिस विषय को लेते उसको बहुत ही विस्तारपूर्वक और यथातथ्य कहते थे। इस कारण उनकी कविता से तत्कालीन रहन-सहन में अच्छा पता लगता है। यही कुछ कुछ-कुछ जायसी में भी वर्तमान हैं। सिवा स्वाभाविक कवियों के और किसी में यह गुरू नहीं पाया जाता । इसके लिये यह आवश्यक है कि कवि अपने । प्रत्येक दिषय का पूर्ण झाली हो और उससे सहृदयता भी रखता हो । जायसी ने रूपक, उत्प्रेक्षा, उपमा आदि अच्छी कहीं हैं और अपने ग्रंथ में उचित स्थान पर सदुपदेश भी दिए हैं। इनकी कविता में उईडता का भी अभाव नहीं है। इन्होंने स्तुति, नख-शिख, रसोई, युद्ध और प्रेमल्हाप के दर्खद शेिष सफड़ता से किए हैं। | अखरावट में ३३ पृष्ठों द्वारा परमेश्वर की स्तुति और संसार की । असारा कही गई हैं और इसमें क से लेकर प्रायः सभी अक्षरों पर कविता की गई है और प्रायः हरएक• सँ पर कई चौपाइयाँ दी गई हैं। यह ग्रंथ पद्मावत के पीछे देना होगा। इस बात का अनुमान इसके विषय से होता है। जान पड़ता है कि जिस समय इनकी भीड़