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मिश्रबंधु-विनोंद

३३० मिश्रबंधु-वनोद की भाँति पूजा होने नगीं थी, उस समय यह बना था।उडाहरणार्थ इनकी कविता के दोनों ग्रंथों से कुछ छुद नीचे लिखे जाते हैं--- | वंदना कीन्हेसि मानुस दिशिसि बन्डाई ! कन्हे अन्न भुगुति सहँ राई । कन्हैसि राजा भोज राजू ; कन्हेसि हस्थि घोर त साजू ? कुन्हेिसि तेहिं कहें यहुत बिरसू ; कान्होले कोइ ठाकुर नेइ दारू । कन्हेसि दरवि गरदु झेहि होई । कीन्हेसि दोभु अचाइ न कोई । कीन्हेसि झियन सदा सद् चट्टा : कीन्हें सि सक्षु न कोई रहः । कीन्हेसि सुख अरु कोहि अनंदू ; छन्डेसे दुस्ख चिंता श्री इंदू । औन्हेसि कोइ भिखार कोई धर्नः । कीन्हेसि सँपति बिपति पुनि बनीं । कीन्ट्रेस रास मृत परेता : कीन्हेसि भूकस देव दुरुतः । क्रीन्स अनलँड और जड़ मूरः । कीन्हेखि तरबर तर स्खजूरी। कीन्हेंसि सात समुंदर पार : कन्स मेरु अखंड पहारा । । कीन्हेसि कोइ दिनल कन्से कोइ बरियार ;. | छारहि वे सब कीन्हेसि मुनि कीन्हेसि स्व छार ! - दाल-बिचार आदित सुक पच्मि दिसि राहू ; ईरफ इडिन लक दिसि दाटू । सोम सर्नचर गुरुङ न चालू । मेर. बुध उत्तर दिस-कालू । परी रेनु होइ रबिहे गरस : भानुख देख लेई फिर असा } मुईं वे अचरिच्छ मृत पड़ा । ऊपर होइ छाब्दा म मंजुइ । । डोल्यइ गन इंद्र डर कैंप ; बासुकि जय पतारहि चयः । मेरु धसमसइ समुद सुखाई । बनसँड टूटि खेह मिाले जाई । .... .. अलराट धुई अरू. बहु उन विचारू । जेहि महू कादं समाय संसारू. १ जसे आह निराशमी सर । इसमें ज्ञान काया. नृप । न है पिर अङः वेद पूरी : उन म बन्ड ऑखद मृ ।