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मिश्रबंधु-विनोंद

२६८ | निबंधु-विनोद समरज पर अहुत पढ़ा । इनका याना सुनने को अकवर एक बार वेज बादलकर तानसेन के साथ इनके यहाँ गए ! तानसेन नै जान- बूझकर गाने में ग़लतः कर दे । तब हरिदासजी ने उसे शुद्ध करके नर गया और अकबर के मनोरथ पूरा हुआ । विना इस युक्ति के इन गाना सुनना अकबर को नसीब नहीं होता था । वाय राधाकृष्णदास ने लेखा है कि भसिंधु में इनका जन्मस्थान को के समीप हुरदासपूर ञ्चिस्व है अर यह कहा गया है कि ये सजाय ब्राह्मण थे, परंतु इनके देशधर इन्हें सरस्वत ब्राह्मण मुल्तान के चिकटस्थ उछाँव का निवास बताते हैं । । । | ( ६४ अ ) बढुवीर कवि तिरहुत-निवासी क्षत्रिय थे । आपने सं० १६०८ में डंगवे पर्व ग्रंथ अनन्य जो विशेषतया दोहा-चौपाइयों । में है। रचना साधारण श्रेणी की है। (६५) गोस्वामी श्रीतुलसीदासजी। • इनका जन्म संवत् १९८६ में रजःपूर ज़िला-खाँदा में सरयूपार ब्राह्मण आरमाराम दुबे की धर्मपी हुलसी के गर्भ से हुआ था । माता-पिता ने इनका मान समयला रक्खः । तुलसञ्चिरित्र के आधार पर कुछ लोग इनके सर्वमान्य चरित्र, जन्मसंवत्, माता, पिलर, भाई आरंदे के नाम से संदेह करते हैं। उनके विचार में गोस्वामीजी नै ७५ वर्ष के अवस्था में रामायण बनाना प्रारंभ की और प्रायः १२० वर्ष की अवस्था में शरीर त्याग ! उसके कथनानुसार : स्वामी बाल्यावस्था में दरिद्वी न थे और उनके भाइयों में शुक नंददास न थे । अर्थिक दरिद्रता को अभः स्वयं गेस्बाई : के कथनों के प्रतिकूल है । नंददास का भाई न होना ८४ वैष् की छात्र के प्रतिकूल है। यह ग्रंथ गोस्वामीजी का समकालीन है।

  • ७१ वर्ष की अवस्था में रामायया का प्रारंभ होना अनुमान-विख्छ

है। यह दुशा १३० वर्ष की अवस्था की है। हम तुलसीचरित्र का