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मिश्रबंधु-विनोंद

३७० निबंधु-वनोद पुराए, रानमुक्तादलर, और ज्ञानदीपिका । चौथं त्रैवार्षिक स्त्रज्ञ में इनके स्वयंवर तथा सीता और हनुमानशिक्षामुक्कावली और मिले हैं। कृष्णचरित्र तथा सगुलादली भी इनके ग्रंथ मिले हैं । ये ३ ग्रंथ द्वितीय त्रैवार्षिक सत्र के हैं * । इनमें से बहुत-से ग्रंथ परमोत्तम हैं और उनमें भी रामचरितमानस, कवितावल, गीता- बली, कृष्णगताबळी, हनुमानबाहुक और विनयपत्रिका बहुत ही अमूल्य ग्रंथ-रत्न हैं। इन सबमें भी रामचरितमानस की यरवरी कोई नुहृीं कर सकता। धरना ये कहना चाहिए कि इसकी सुमता हिंदी-साहित्य में क्या शायद किसी भी भाषा का कोई भी अय्य- अँथ नहीं कर सकता है हमारे इस कथन पर चकना न चाहिए । हम पूर्ण रीति पर आया-पीछा विचारकर शांत भाव से पैसा कहने का साहस करते हैं । अवश्य ही हमने संसार की सभी भाषा की कौन कहे, थोड़ी-सी भाषाओं का भी तश्व नहीं जान पाया है, हर जहाँ तक हम तुच्छ ज्ञानदालों ने देखा-सुनार, हमने किसी भाषा में कोई कवि गोस्वामीजी से बढ़कर नहीं पाया और न कोई ग्रंथ उनके रामचरितमानस के सामने ठहर सय । इस ग्रंथ-रख में बहुत-से ऋबिर्यों ने अपने क्षेपक भी लगा दिए हैं, परंतु उनके कारण रामायण में सिवा दो के कोई विशेष चमत्कार नहीं आ सकी । उपर्युक्ल नामावली में भी कई ग्रंर्थों के गोस्वामी ‘कृत होने में संदेह है । गोस्वामीजी ने कविता कर पृथक्- पृथक् प्रणालियों की रची हैं और इनके ग्रंथ देखने से विदेत होता है कि मानो चह चार भिन्न-भिन्ने उत्कृष्ट कवियों की रचनाएँ हैं।

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का था चन्दा हैं । प्र० ३० रैपेर्ट में इन तुलसीसतसई-नामक ग्रंथ