पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३०९

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प्रौढ़ माध्यझिकरण . अनुन्छित उचित विचारु तजि ॐ पालहिं पितु बैन । . ते स्वजन सुख सुजस के ब्रसहिं अमर पति वा ।। सय र घरज कहई । पूत पथ्य र बसु अहुई। सो दरिंय झरिय हित मानः ; तुजय बिषाद् काख अद्धि ज्ञानी । छन रघुपति सुरपुर नरनाहू ; तुम्ह यहि भाति ताव कराडू । परिंडन प्रजा सचिद सब अंबा ; तुम्हही लुः स्त्र कहूँ अवलंबा । वो बिधि बाम कद कठिनाई ; धीरज धरडु मरतु बाल जाई । मिर र चुम् अायसु श्रनुसरहू ; प्रजा प्राति सुजून दुख इर। मरत कम कर जेरि धीर धुरंधर धीर धार ।। | बचन अमिय जनु बोरि त उचित उत्तर' सहि । मोहि उपदेश दीन्ह गुरु नका ; प्रजा सचिव सुम्मत सब छ । मातु उचित पुनि अयनु दीन्हा । अवसि पर धर दाई कीन्हा । अब तुम्ह लिनय मेरि सुनि लेहु । मेहि अनुहुरत्न सिस्वाचन देहू। हित हुमार पियपरत. सेवकाई 3 से हरे न्द्र सानु कुटिलाई । में अनुमानि दुखि मन माहीं । न उग्राय और हिंद ना । भहि नृप कर भलं अापन महङ्क । सो सनेह जड़ता बस अहूं । कह सच सब सुन्न पतियाहू; चाहिय धरम सीता वन्दा ।। हे राज हटि देइहहु जब । इस रसालद्ध जाहे तब्र । अएरपनि छान दीनता छह दहिं सिर नाय ; देख बिन्न चुनाथ यद जिय के जले न जाय । . . भर तल तनिकि सक्छु गिल ; रागन मन छु मेघहि मिलई ।। बई छ. चूहा दोन ; सद्द झा वह छड़इ ई ।। अस्% छूक मकु मै उट्टाइ : होय न नृप मद भरतहि भाई । सगुन र गुन जड तर ; मिलई रेई परपंच विधाला । मरहें झंका रछि यो तन्द्रारा ; जमि केन्द्र सुन दोघ विभाइ । ॐ त छ ज म भर को यूं सक्कल भन्म-कुर अनि धरत थे । रामचरितमानस ।