पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
२७४
मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद (६६) महाकवि केशवदासजी ये महाशय सनाच्य ब्राह्मण कृष्यदत्त के पौत्र और काशीनाथ के पुत्र थे। इनका जन्म प्रोड्छे में संवत् १६१२ के लगभग हुश्रा पर प्रसिद्ध कवि बलभद इनके भाई थे। ओढ़छा-नरेश महाराजा राम सिंह के भाई इंजीतसिंह के यहाँ इनका विशेष आदर था । महाराज बीरबल ने केवल एक छंद पर छः लाख रुपए इनको दिए थे। अापने महाराज बीरबल के द्वारर अकबर के यहाँ से इंद्रजीत पर एक करोड़ रुपए का जुर्माना मान करा दिया था। इसी समय से केशद- दास वा नोदछा-दरवार में विशेष मान हुआ, जिसका वर्सन इन्होंने स्वयं इस प्रकार लिखा है- भूतल को इंद्र इंद्रजीत जीव अग जुग जाके राज केसौदास राजु सो करत है" । इनके शरीरांत का समय सं० १६७४ ठहरता है। .. . केशवदास ने निम्न लिखित ग्रंथ बनाए.-1 रसिकत्रिया, २ कविप्रिया, ३ रामचंद्रिका, ४ विज्ञानगीता, ५ वीरसिंह देवचरित्र, . . ६ जहाँगीरचंद्रिका, नखशिख र ८ रत्नबाबनी । इनमें से अंतिम 'दो ग्रंथ हमने नहीं देने हैं । रसिकप्रिया में श्रृंगान-प्रश्वान रसों का वर्सन है और प्राकार में यह ग्रंथ रसराज के बराबर होगा खोज ११.३ से रसिकप्रिया ग्रंथ १६४८ में रचा जाना पाया जाता है। इसकी मनोहरता दर्शनीय है। विज्ञानयीता प्रबोधचंद्रोदय की मांति नाटक के ढर्रे का एक साधारण मंत्र है । कविप्रिया विशेषतया अर्क- कार-धान ग्रंथ है। इसमें दूषण, कवियों के गुण-दोष, कविता की ऊँच, अलंकार, बारहमासा, नख-शिख और चित्रकाच्य वर्थित है। यह बड़ा ही उत्तम ग्रंथ है और स्वर केशवदास ने इसकी प्रशंसा भी की है। इसी ग्रंथ से इनको भावार्य की पदवी मिली। शाम चेद्रिका में रामचरित्र का वर्णन अश्वमेध-पर्वत है। यह भी सुटक शबा रे बोलक और प्रशंसनीय ग्रंथ है। खोज ११.२ से ककिनिया लया