पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३१३

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प्रौढ माध्यमिकर देवी बन बारी चंचळ भारी तदपि तपोधन मानी । अदि तपमय लेखी अग थित ऐखी तदपि दियर ज्ञानी ।। र: जदयि दिगंबर पुष्पवती नरनिरखि-निरखि मन मोहै ? पुनि पुष्पवती तन अति-अतिपादन गर्भसहित हित सोहैं। पनि गर्भ सँजोग रति-रस-भौब जगजन छीन कझावै । गनि जग जन लीना नगर प्रमीना अति पति के चिंत भावें । अति पतिहिं मावै प्रेम बढ़ावै सौतिन प्रेस दृढाबै; अब यों दिन-रातिन गुनि बहु भौतिन कवि-कुल-करिति गावै । : उटि ॐ धन धूर अकास चली 3 बहु. चंचल वाजि खुरीन दली । . भुव हालति जानि अकास इिए १ जनु थंभित ठौरई गैर किए। दहि भूरि बिमानले व्योमथली । तिन जनु टारन र चली ।। परिपूरि अकासहि घूर रहीं 5 रू यो मिटि सूत्रकास. सही है । . अपने कुल को कलह क्ष्य देखहिं कि भगवंत । . . बहे जानि अंतर कियो मानौ मही अनंत ।। अडु वाम दीह पताक लसै ; मनु धूम मैं अग्नि किं ज्याज बरौं । रसला किंध काह कराल भनी । छिध मीचु नचै सहुँ र दली । वैरहवाँ अध्याय प्रौढ़ माध्यमिक काल में हिंदी । १५६१ से १६८० तक }..... | यह पूर्व समय हिंदी-कविता के लिये परम सौभाग्य का था । हिंदी की उत्पत्ति हुए प्रायः आठ लौ वर्ष बीत गए थे, परंतु सिदा और के कोई भी प्रथम श्रेस का कवि अब तक नहीं हुआ था ! झंख्या में भी पिछले आठ सौ कई मैं इस सवा सौ वर्ष के अपेवर बहुत थोड़े अवि इयत्व हुए थे। चंद रदगई, कबीर और .