पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३१७

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प्रौंद झाध्यामेक-प्रकरवा २६ ऋथा नाचको भेद पर ग्रंथ रचने की भी था इसी समय से केशव दास द्वारा चली । इस अनमोल काल के पूर्वार्द्ध में श्रीकृष्का-संबंधी कथा का विशेषतचा पदों द्वारा पूर्ण साम्राज्य रहा, पर उत्तरार्द्ध में बिविध विषयों का वर्णन होने लगा । पूर्वार्द्ध में जाग्रसी ने कथा- प्र क्र . एवं कृपाराम ने रीति-अवाली प्रणाली की नींव अवश्य अली, पर उस समय कवियों में इनका कुछ विशेष समादर न हुआ । इंढिंठों का विचार हैं कि जायसवाले समय के लगभग कुछ साधारह कवियों ने भी उसी प्रकार की कविता की थी, पर उत्तम न होने के कारण वह संसार-चक्र में दबकर हुए अथवा लुप्तप्राय | संवत् ११६१ से. १६३० तक अष्टछाप की कविता के दंग पर अनेकानेक भक़वरों में पर्यों में -भक्ति की मनमोहनी कविता की, ॐ भक्तकल्पद्रुम, रागानगरोद्भव, सूरसार आदि ग्रंथों में संगृहति । है। दाम, दामोदर, वासुदेवलाल, गोपालदास, केशवदास (दुसरे, नारायण, खेम, निर्मल, पद्मनाभ, माधवदास, कल्यालदास, मदन- मोइन, मुशारदास, श्याम, धोंधे, श्री भट्ट, अगदरसे, बगन्नाथ, ज्ञान , रेल ( प्रसिद्ध गानेदाले), जगजीवन, द्वारिकेस, बिष्णुदास त्रैलोक, चलुरबिहारी, नरसैयाँ, रसिक, बिहारिनदास, श्रीस्वामी हरिदास ६ बड़े भङ्ग तथा धर्मप्रचारक }, ब्रजपति, व्यास, श्रीस्वामी बिल थजी, कान्हरदास, अगवान हित, बिटुल विपुल, गदाधर, आस- झरन, रामदास, वृंदावनदास, माधवदास, गोपालदास, दामोदरदास, महाय, नरवाहन, केदहराम, रघुनाथ, बंसीधर, चंद्रसी, रसरंग, बलराम, मासिकचंद, सगुनदास, कलानिधि, अज्ञानानंद, विद्या- डा, परशुराम, नवलसखी, संतदास; ललितकिशोरी इत्यादि भिन्न- कि समय में इसी प्रकार के कवि हुए हैं। इन सबने अष्टछाप के कवियों से मिली-जुली कविता की है और कृयानंदसागर की