पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३१९

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प्रौढ़ माध्यमि- प्रह । तुलसीदास से भी मिलने की उन्हें इच्छा हुई थी। अझरी - दर में हिंदी के विशेश समदर से उस समय अन्य हिंडू और मुसलमान बड़े सलु के यह भी हिंदी का अच्छा मान होने लगा है कई मर भी तुलसीदासजी के समयाले कवियों में हिंदी की वृद्धि ॐ इक झार हु । अकबर के साथ औरंगज़ेब ॐ झाले है। अक्षरी भारत में पूर्ण शांति रही। इस बार भी क्वचिता की इस समय बहुत अच्छी उन्नति हुई। इस समय हिंदुओं और मुसलमानों का विशेष संघट्ट हो रहा था, से जिस प्रकार पुरानी संस्कृत और पुरानी काकृत के मेज से पार्द की उत्पत्ति पूर्व छाद में हुई थीं, उमी प्रकार झारसी और हिंदी के सम्मिश से एक नई, को धूढ़ हो रही हैं, जिसने समय पाकर उर्दू, झड़ रूप ग्रह थि और ज अब झारी अक्षरों में लिखी जाने तथा कोरस-शों की अचर। ॐ कार पुस्तके में हिंदी से गृक पृय भाषा-सी, देख पड़ी हैं, यद्यपि साधारण जनसमूह के यज्ञशाल में कोई सुसर भेद नहीं है। भी दहत दिनों से बन रही थी और अबर के काल में इसकी भारी उन्नति हुईं तथा इसमें कविता भी विशेष होने ली । स्वयं अळ्यर ने इसमें कुछ रचना कई श्रीर लानञ्जना व्हीम ने . : इक्का सादर किया । इसी संघट्ट के कारण ही में एक्सी ॐ शुब्द तथा अव भी इस स्ल बहुतायत ले अा गए, जिनसे ॐदी को एक नया चमत्कार एस हुआ। हिंदी को ऐसा ही प्रमोद विदेशी प्रथा र ऋविता पर भी पड़ा... . .: शून्नानदानः (रहीम ने झारली-मिश्रित झाषा, उर्दू-मिश्रित , दष्ट, ग्रामी भएषा आदि सभी प्रकार की हिंदी में इस समय कविता की नुधा हीरचर (झ) ने ब्रम में प्रशंसनीय छंद रचे । अकबर ने उपर्युक्ल का ई अतरंक्ल ब्रा में भी चना । अश्तिा की दृष्टि से इनकी गहना साधारह श्रेही में हो सङ्ठी हैं ।