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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विदोद साहि अकबर बाल की बाँह अचिंत गही चाह भीतर भने । सुंदर द्वारहि दीठि लगाय ॐ भाबि को भ्रम पवित्र गौने ।। चॉकत-सी बहुर बिलोकत संक सोच रही मुख मौने । यो छवि नैन छबीली के छाजत मुनि बिछोह परे मृगछौने । |. यह वर्णन मोबाज़ार से मुलाकर छाई हुई किसी स्त्री - भन्न पड़ता है ।। अन्य उन्नतियों के साथ अकबर के काल में हिंदी को यह डाळि मी पहुँची कि इसका प्रचार सरकारी दफ्तर्चे से उठ बइया अब तुद्ध दफ्तरों में भरावा-प्रचार बराबर रहा था, पर महाराजा टोडरमल को यह समझ पड़ा कि दफ्तरों में हिंदी-प्रचार के कारच्या हिंदू लोग। फ़ारसी कम पढ़तें हैं और इस प्रकार उन्हें सरकारी इदे बहुता- यस से नहीं मिलते हैं इस विचार से उन्होंने हिंदी उठकर फारसी कालाई । जिसमें हिंदुओं को भी वह विद्या पढ़नी पड़ी। इस प्रकार साधारछ जनसमुदाय में फ़ारसी के नूतन भाव फैले, जिनका प्रभाव हिंदी-कवितापर भी अंगार युवं विविध विषय-वर्द्धन में पड़ा । सो टोद्धरमज़ की इस अंज्ञा ने हिंदी प्रचार को हानि पहुँचाई, परंतु साहित्य-विषय-स्कुर को इससे भी कुछ लाभ ही हुआ। | अकबर की समय मोटे प्रकार से तुलसी-क्काल से मिलता है। तुलसी-काल हमले १६३१ से १६८० तक माना है । यद्यपि सूर- दास १६३० में स्वर्गवास हो चुके थे, तथापि अध्छापदाले कवियों ने उनके पीछे तक उसी प्रकार की कविता की । अतः मोटे कार से बहुत अके६६३० तक और कविता कस ढंग स्थिर रहः । मोस्वामी तुलसीदास ने १६३१ में रामचरितमानस { छ } वन्य प्रारंभ किया । अकबर संक्रू १६३३ में ही . क्र हैं, पर थहै छ उनको राज्य भली भाँति अमने नहीं