पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३२१

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. प्रौढ़ माध्यमिक-प्रकरण २८१ प्रायः था । अब इनका शासन ख़ब स्थिर हो गया और शति एर्णरूपेण उसुरे भारत में स्थापित हो गई, तब अकर के यहाँ हिंदी को जम्मान हुआ और हिंदी के लिये अबर-काछ के बाम तभी से प्रारंभ हुए । यह समय भी मोटे अक्कार से १६३१ से प्रारभ होता हैं । तुलस-क्राल में षा-ऋश्तिा ने सौर-काल से भी अधिक विकास पाया । इस समय मुसलमानों के संधश्च के र इसे नए शब्दों और भावों से एक नवीन ज्योति मिल रही थी और शांति-स्थापन से अच्छा बल प्राप्त हो रहा था, जैसा कि ऊपर कहा आ चुका है। इन कारणों के अतिरिक़ त्रैव संप्रदायवालं। सुदल्लीनता ने इस काल एक और भी क्या जल या । श्रीस्वामी रमानंद का नया मैतव मत दुझिछ से दिनोंदिन इश्वर की ओंर , ऋढ़ती अन्तिपुर, था। उसने इस समय उत्तर में भी अच्छी बेल से कर लिया था और जैसे चक्काचार्य सहाप्रभु द्वारा कृष्ण-भक्ति का प्रभाव हिंदी पर पढ़ा था, वैसे ही इस मत द्वारा राम-अकि का बद्ध हिंद-कदेता सहायक हुा । दोस्वामी तुलसीदास, शब्द, एवं अन्य विवर में इस समय श्रीरामचंद्र पर अच्छी कविता की । इधर की दरकार को प्रभाव दिविन्न विषयों द्वारा हिंदी में अभूषित कर रहा था ! इस काणं हमारी भाषा में तुकास-काल में अनेकानेक विषयों के वनों में भी संतोषदृश्चिक इति दिई । भके के अतिरिका अन्य विश्य नै शता, इंसर आदि प्रधान हैं। अकबरी झांज में यातीयता की उन्नदि भारत में नहीं हुई सो शौर्य की और इस समय हमारे कवियों को ध्यान नहीं था, जैसा कि आगे चढ़कर शिवाजी एवं कुश्साह के समय हुआ। उधर झाली के नगत भा नै भंगार की विशेष पुष्टि की और बभव क्व से अक्ल कवियों में इसकी भक्ति से प्राधान्य था ही, सो । भाऊ ढवि ने भी श्रीकृष्ण को मारो नाङ दर भक्क