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मिश्रबंधु-विनोंद

| मिश्रदधु-विनोंद की झड़ में नारि-भेद द्वारा श्रुंगार-कृच्चिा में है। पूछ बल्ल और ध्यान लगा दिशा । इस ई भझिहीम ऋगारी कविता के इले अवार्य शब्दात्र हुए, हिनि स्विप्रिया में भी रहा है। उदाहरण ऋगार में ही दिए । अतः राम-भक्ति के साथ शुर- कविता में भी अच्छी उति की । इस हाल में कवि इन अधिक और बहुत उत्कृष्ट हुए हैं। इन सबके विषय में पृथक् पृथक् झवाझ कले लें ग्रंथ का अपर बहुत चद् था, अतः हम्में हुई अध्यक्ष्य ॐ अंत ॐ ॐ चक्र ६ देंगे, जिसमें इस समयों न कोय ॐ म, उनकै समय, उनके अंधे और इनकी कविता पर सुक्ष्मल अनुमति प्रकाशित झर दी जायगी । चई। इन अभ्य अभ्याए । विश्य में भी रहेका १ प्रधान-अंधान ऋवियों की समीक्षा भी यकृ लिख़ी जाती है । कहीं-कहीं उत्तम अश्यिों की भी समालोचना उनके

  • थ न मिलने या अन्य कारणों से नहीं क्लिखी जा सकी, अतः यह

न समझन्डा अहिए कि चक्र में लिखे हुए कवियों में प्रधान कसे । | हिंद-मय लिखने की भी प्रणा, प्रायः इसी समय से पुष्टी है । अवश्य हो इसके प्रथम महात्मा गोरखनाथजी में - न्या की, परंतु इस काल के संवत् १६८० में अमल में गोर- । यादव की लल्ला गद्य खडी छ । ॐ झिवी } इसकी भी आज अचम नहीं है और न इस बार के ऋदि से सङ अशा ही की इ सकर्त है, सभापि छन्। बाह्य कचर्यों में करनी चालिए । अब सक योरखनाथजी, बिहाथ, गंग, गोकुलनाथजी और टमले प्रधान वा-ौसक हुए, जिनमें बॉय और अदमङ ३ गम्छी ली मिश्रित य ॐ ब्रेक थे .....