पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३२५

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प्रौढ़ माध्यमिक | २८६ द्वान पुस्य छरि दित इलु किवैया सेच्यो ।। ॐ पंड्रा सौ असइ पौष पाँचै जवि जाण्यौ । जिस छूपए इक दोहु तिसौ गुन्सु तासु वखार है कविं कई ठकुरी घेरह तडु मैं परमत्थु बिचारियौ । माइक्य त्याई ल्य, जनमु हि साँच्यौ तिह हारियो । अम -३ ६७ ) बालचंद जैन्न । --रम् सीता चरित्र । - काल--->१६० । ... नाम-( ६ ) द्धालदास हलवाई रायबरेली । --( १ ) भागवत दुशम स्कंध की भाषा ६ ३५८७ } ( ३) हरि-चरित्र ( ११८५ } । । छविता-का-११८५ } क्विस्थ--यह पुस्तक लाला भगवानदीन दीक्ष”, अध्यापक | हिंदी हिंदू-विरदविद्यालय, काशी के पक्ष हैं। उन्हीं से इममें इसकी सूचना मिली है। काव्य की दृष्टि से यह . : निम्न श्रेणी की हैं, परंतु पुरानी होने से संग्रह करने योग्य है। उदाहरण हीलिए--- चंद्रह सौ साली जहियाँ ; समै दिलंति बरनों शहाँ । म असा था अनुसारी ; हर असर इसनी इञ्जियारी । काळ संत हैं नावईं माथा ; बलि-खि वैह बादधनायो । इत्यग्रेजी अरनि अवासा ; चिद अनासकै असि । ( ६६ } महापात्र नरहरे बंदोजन .. इक्की जन्म संवत् १६६२ में हुआ। कहते हैं कि इन्होंने १०५. वर्ष की अवस्था पाई। ये महाशय असली-फतेहपुर के रहनेवाले ॐ और अकबर के दूरबार में इनका अच्छा आदि का । अक्ल ने इन्हें मात्र की उपाधि दी थीं। इनके दाङ हुए मच्छी-मैगज़ और , ।