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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रधु विनोद छप्पयनीति-नमक इंथ सुनें जातें हैं । खोज में इनका जवा- संग्रह-नामऊ ध मिला है । इनळी गाना तो ऋवि * श्रीं ॐ की जाती हैं। उदाहरण-- अरिह दंत तिनु धेरै सहि नहिं मार सकते हैं हम सतत तिन च हैं बचः इयरहिं दम हो । अमृत प्रय हि सवहिँ बच्छ महिं मन चाहे । । | हिंदुहि मधुर ३ देहिँ कटुक्क सुरकहें न पियाद ।। कई कवि नरहरि अङ्कवर सुन बिनवत अउ रे अरन । छपराध कौन मई मारियत मुबहु चाम सेवई चरन ! इनका कवितः-अल १६६० से प्रारंभ होती है । (७०) स्वामी निपटनिरंजन ये सहाशय भासा के प्रकृष्ट कृत्रिं और द्धि मशहूर हो गए हैं । लौज में इन सय १५६ लिखा है। इनकी देता बड़ी जोरदार और यथार्थ नेवर्ली होती थी । संतरसी और निरं ऊन-संग्र- नामक इनके दो ग्रंथ लिहें हैं। इन्होंने बोरजी की माँति साधारण बातों में भी ज्ञान ऋथ किया है। अन्योक्कि भी थे परम मनोहर कहते थे। इन्होंने ग्लुङ बोध की भी झवता-कुछ-कुछ की हम इर्छ। ॐ तो झवि क श्रेणी में झरेन । सुरः जाता है कि अब दुइह में इन्हें भूट की थी । उदइ -... हैं भूत ६ ऋतहि के वन्य मृत ॐ भान भुत ॐ पाई। • खेत में इत खराब ॐ मून औं भूतहि मृत इ. दिसि छौ ? ॐ अिन अन्त मृत है ईः ॐ जर हैं अनुहाग्ये; शत्र ॐ लु ३ त ई भूल हैं अरे ॐ भूत हैं ' ला ४..