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मिश्रबंधु-विनोंद

२६३ मिश्रबंधु-विनोद . बिटुलजी के सात पुत्र हुए, अर्थाङ गिरधरजी, गोबिंदी, बद्ध- कृष्णजी, गोकुलनाथजी, रधुनाथजी, यदुनाथी और घनश्यामकी । वल्लभाचार्यश्री के सात ठाकुरजी मुख्य सेव्य थे। ये एक-एक इन पुग्न में बँट हुए और इस प्रकार इस गोकुळस्थ संप्रदाय की सात गष्ट्रिय स्थापित हुई जो अब तक स्थिर हैं और जिनमें से प्रत्येक की वार्मिक झाय पचास साठ हजार रुपए है। इनमें से तीन मैचोड़ राज्य में हैं, दो कामवन में, एक गोकुद्ध में और एक कोटा-राज्य में । { ४२ ) नरोत्तमदास बिसवाँ कृत्रिमंड के भूतपूर्व मंत्री स्वर्गीय पंडित देवीदत्त त्रिपाठी ने द्धिला था कि ये महाशय क़स्झा बाड़ी, जिला सीतापुर के रहने- वाले थे और संवत् १६०२ तक वह वर्तमान थे । इन्होंने यह भी लिखा था कि नरोत्तमदास ने संवत् ३८३ में सुदामा-चरित्र-नामक प्रसिद्ध श्रेय लाया । स्रोञ्ज ( १६०० } में भी इसका पता चलता है ।... ये नरोत्तमदास-कृत ध्रुव-चरित्र-नामक एक द्वितीय ग्रंथ का भी नाम । लिखते हैं। ठाकु शिवसिंह ने भी इनका संवत् १६०२ हिस्सा है। जर पड़ता है कि नरोत्तमदास अन्यकुब्ज ब्राह्मण थे, क्योंकि सीता पूर में वही ब्राह्मण रहते हैं। | इनका सुदामा-चरिझ३३ पृष्ठको क छोटा-सा, परंतु परम मनोहर अंथ है। इनमें सुदामा की दरिद्रता और संपत्ति दोनों के बड़े बर्दिया वर्णन किए गए हैं। उनके संतोष और उच्च विचारों को भी इसमें .. अच्छा चित्र अंकित है। इस छोटे-से ग्रंथ में नाय का शीद्ध-गुरू । तूच रखा गया है। इनके स्फुट छ । बहुत कम देखने में आते हैं, परंतु इनका झंगर-इस का भई एक टत्तम छ है हमारे पास हैं । इनकी भाषा इजाई और काब्य परम प्रशंसनीय है । इन्होंन्दै हर विषय का अबल एवं स्वादाविक वर्णन किया है। भिन्न-वे के