ढ़ अध्यमिकूअक्कर इनके जन्मस्थान के विषय में इतिहास में कुछ मतभेद है, पर हमने दर्युक कथन भृवस कवि के अधार पर किया है। ञ्चिज कनौज कुल कास्यप रतनाकसुत धीर : बसत त्रिबिक्रमपुर सदा. तरनि-तबूजा-सीर । यथा-. दीर बीरबल से अहाँ उपजे कवि अरु भूप ;- देवविहारीश्वर अहाँ बिश्वेश्वर तद्प ! । {शिवरामभूषण । बह्वारा बीरबल का दलाच्या हुअा गाँव अकयधूर-दीदव भी बहू से करीब ८ मीत्व पर है । एक साधारणं शो से अपने बुद्धिबळ ह्रास उन्नति करतें हुए ये महाशय अङ्क छह के चवों में हों ? अर ही दरार लै इन्होने एक्ल व अवगीर तथा महाज्य की एवी पई । ये अकबर के सेनानायकों में से थे और युद्ध में भी जाते थे, यहाँ तक कि इक्का शरीराल भी संवत् १६४० में रणक्षेत्र ही में हुआ } में महाराज सदैव कविता के प्रेमी रहे और ब्रजभाषा की अहूत अच्छी क्वचिता करते थे। इन्होंने छंदों में पार्दै बहुत अनूठी कही, और प्रायः उपमाओं के खिये छंद है, अर्थात् ॐ अछ। उपमा सोची और छेद में इसका सम्मान धर अंत में उसे क्रय ट्रिया । इनक्री कविता सानुप्रास, सकार, हुलित और मनोहर होती थी । इन्की रणना ५ कवि की श्रेणी में हैं। कवि होने के अतिरिक्क ६ माय हाजिर-बाद भी बड़े भार थे । इनके मज़ाक़ बहुत माके के होते थे और वह प्रायः अमर शह से हुआ करतें थे, जिसम सुधि- स्तर चर्झन बानिए-नामक झंथ में हैं। इनकी हाज़िर-अदबी. का कैवह कृ उदाइरह यहाँ द्विा • जाता है। कहते हैं कि इनके पिता भूखे थे, में दरवारियों ने बादशाह द्वारा उन्हें एक बार दरबार में बुलाकर उनकी मूर्खता से ईद की पाना चाह । वैदल :