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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद ने उन्हें सलाह करने थी शाही अदाय के साथ उचित रति से बैठने के नियम सिस्वा दिर, पर समझा दिया कि वै अन्य एक शब्द भी उच्चारख तु और क्रिसी ॐ साधारण-से-साघारय प्रश्न तक का उत्तर न दें। उनके दरबार में आने पर अकबर ने उनसे कहं साधा- या प्रश्न किए, पर वे एकन्द्रम मौन ही धारण किए रहे । इस पर बादशाह ने फ़रमाया कि दीरज ! अब बेदक्कफ़ से साबिंब पड़े हैं। कोई क्या करें । बीरबल ने कहा, महाराज द्धामोशी श्रख्यार करें। यह उत्तर**जाये हिंाँ बशिद ख़ामोशी' के आधार पर कहा गया था। . इनको बुद्धि व प्रखर थी, तथा उदारतो बहुत ही खट्टी-चढ़ी थी। ये छवियों के बहुत बड़े सहायक थे। केशवदास को इन्होंने एक बार एक छेद पर छः लाख मुद्रा दी तथा ओड़ा-जरेस पर ॐ कोटि का जुर्मान्दः माफ करा दिया। अकबर शाह के यहाँ इनसे बढ़ा सम्मान था । स्थानाद व इन रचना में से केवलं दो छैद यहाँ दिए जाते हैं - एक समै हरि धेनु चरावत बैनु बावत मंजु रस्सालहि । डाठि गई चलि मोहन की वृषभानुभुती उर मोतिन मावहिं। सो छबि ब्रह्म हुऐ हिंए कार से कर लें र के सनहि । ईस के लेख कुलुम्म की मात मन रहिरवति ब्यालिनि ब्याहि । उछरि-उछुरि भैकी झपढे इरश पर, | उस्। ६ ॐकिन के खपर्दै ज्ञहहैं; केकिन के सुरति हिए की ना कछु है भए, | स्की कई हरि न चोखत हङिहै। कहै कब ब्रह्म बारि हेरच हरिन फिर्दै, । बैहर इस बड़े और सों अहकिहें ।

, तरनि के हादन तछा- भई भूमि रही,

• दसडू दिन मैं वारि-सी दुहहै। • इनके रन्हित किस ग्रंथ व पता नहीं म्हीि सका । पर पं० मय-