पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३३७

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प्रौढ़ माध्यमिक-प्रकरको । सब देवन में दरार जुत्व तहँ गद्ध छंद नाय के गाय } | व काहू तें अर्थ कच्चों ने यो तब मार्द एक प्रसंग चल्ला ! . कृतल्लोङ्क में हैदर एक गुनी अहि गंग को जाम सभा में बतायो । सुनि चाह भई परमंसुर को तड गंग को देन गनेस पा | देव कवि नैं भी ‘‘एक्क भए प्रेत एक भीजि मारे हाथों में कहकर डैम के हथी द्वारा मारे आनेवाले कक्ष में समर्थन किया हैं। इति- कुसुवेत्ता स्वर्गीय मुंशी देवीप्रसादजी ने लिखी हैं कि गंग की अकबर % किसी अन्य मनुष्य की आज्ञा द्वारा दी आना अशुद्ध हैं, क्योंकि म छै छंद अहगीर की प्रशंसा में भी मिलते हैं। इतिहास से इनके चीरे जाने का होज्ञ साबित नहीं होता और गंगजी शव ॐ समय तक जीवित रहे हैं। इन दो के प्रमाण में हैं निहित छैद दिखतें हैं-- तिमिर लेग बह मल ल्ली बक्र के हलके । साह हमाऊँ साथ गई फिर सहर बछर्छ। अकबर श्री अचि भात अहँगीर खदार । साइजहाँ सुलतान पीठ को भार छुढ़ाए । उन छोड़ि दुई उद्यान बन भ्रमी फित है स्योर र ; औरंगज़ेद बक्षीस क्रिय अब आई कवि य र । बइ छंद मुंशीजी ने दिसंबर सन् १६०७ ई० क्वी सरस्वती में निकाला था। इस बाई अशुद्धियाँ छान पड़ती हैं। 'इके' कर तुकांत ‘क्त बुरा है। दूसरे हनी का अच कर भी अयुङ हैं। तीसरे जय हथिनी इतनी छुङा हो गई थी कि उसने रोट तक दत से कार्य नहीं करता था और इस कारण अगर को उसे रौद के स्थान पर भानु विडाच पड़ो, था तब भी वह बोझवा झदिने । के योग्य बदी ही रहीं ॐ दूसरी इश्त में शहजहाँ उस्की पीट का . भार छुवे ? चौधे रोग ॐ जिस समय ह हथिनी मिली, सय सौं