पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३४

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मित्रर्वधु-विनोंद तार्थ होने लगी हो, तो लेक्चरर महाशय की बात भी अवश्य ही ठीक माननी पडेगी। निदान ऐसी बे-सिर-पैर की श्रालोचनाओं का उत्तर देने से कोई लान नहीं ! इस मर्तबा हमें बहुत सा नया मसाला मिला है, जिससे हिंदी की यापकता, और टसका भारतीय राष्ट्र-भाषा होना भली भाँति सिद्ध होता है । भारतवर्ष के सभी प्रांतों में हिंदी के कवि और लेखक पाए मार हैं कहाँ तक कि मदरास भी खाली नहीं रहने पाया। कम-से-कम सात-अाठ सौ नवज्ञात कवियों और लेखकों का पता इस बार दया है। चंदबरदाई तक से पहले के एक सरलवि "सुवाल" का पता "हिंदी-हस्त लिखित पुस्तकों की खोम" में लगा है जिसने संवत् १००० में श्रीमद् भगवद्गीता का हिंदी पत्र में अनुवाद किया था, जो अब सका वर्तमान है। इसका हाल इस संस्करण के पृष्ठ १८-१६० पर मिळे । अन्य अनेक अच्छे प्रतिभाशाली वि भी दिदित हुए हैं। हम प्रथम संस्कार में भी लिख चुके हैं कि लोगों के नाम के आगे पंडित, चाय, मुंशी, इत्यादि सम्मान-सूचक शब्द हमने नहीं लिखे है, परत कुछ महाशम इस पर भी अप्रसन्न-से हुए। उनसे हमारा पुरः निवेदन है कि ग्रंथों में ऐसी ही रीति बरती जाती है। पंडित तुलसीदास, अबू सूरदास, शेन कबीरदास, इत्यादि कभी नहीं लिखा जाता । कभी-कमी गोस्वामी, महात्मा इत्यादि बहुत बड़े महानुभावों के नाम के पहले लगा दिया जाता है, पर यह भी सदा प्रथया सभी टौर नहीं। फिर सब लोग ऐसे महात्माओं के जोड़ के होने भी नहीं। इससे हमने बहुत ही कम स्थानों को छोड़कर ये सम्मान सूरक शब्द कहीं भी नहीं लगाए हैं, यहाँ तक कि महा- . माओं के नाम के पहले भी बाबा, महात्मा इत्यादि शब्द तक प्रायः ही जोड़े हैं। प्राशा है कि वाचकवृंद हमारी इस कार्यवाही