पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३४१

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। । प्यारी ले पसि पौन गयो मान्सर पहूँ, द्धारले हैं। औरै ति भई मानसर की। अक्षर जरे औ सैबार जरि छार भ, जल अरि गयो पुक्क मुख्य भूमि दृरको । नवाई ह्रानाना ज तिहारी त्रास,

  • भागे दैसपती धुन सुनत निसान की ।

शंग तिनहूँ की रानी रजधानी छाँई ।। | फिरें बिललानी सुधिं भूली खान-पान की । ३ भिज्ञ आरिल झरिन । बानरन, तिन की भन्न भई रस्छा तह अल की ? ची 'पनी रिन भवानी वा केहरिन्, मृगन कलानिधि कपिन आनी जारी है अबक्ष प्रचंद्र बही बैंरन के अलावान, . नैरी धाक दीपन दिंसान दह-दही । कई कवि गंग सुहाँ आरी र बीरन के, उमड़ अखेद्ध, दत्व प्रेझै पनि ब्रही। मच्यो धमसान तहाँ तोष तीर छान चढ़े , मंडि अलवानं किंवान कोंथि आइक; कुंड मटि मुंह काटि मि जिरो टि , नीमा आया औव अटि किंर्मी अनि उहकी। कुकत पान मंदाने य दौत भने, एक नैं एक्छ भनी सुखमा अस्द की । कहैं होरे ज़ की अयार थे, फूटी अट घटा ज्यों संरद छ । एते मान सोजित की नदियाँ उमहि वहीं, | रही न निसानी हूँ मई में श्रद को | |