पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३४३

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प्रौद् अध्यमिक नाम --(८३) मलाराजा पृथ्वीराज दीवार । ग्रंथ ---१ श्रीकृष्णदेव रुक्मिलो दे%ि लञ्च {१३००), ३ श्रीकृष् | सुकिसी-चस्त्रि, ३ प्रदीप । ऋविताळाल----१६६७ ।। विवरण–साधारण श्रेणी है के माराम अकबर शुझि के दुरदाह में रहते ६ } द्भिस् समय हरराज प्रतापसिंह अक्कर छ अधीनता क़बूढ़े वाले थे उस समय इन्होंने कुछ दोहे लिखकर उन्को इस काम में किए था । ये महाराज काव्य-रसिक और बड़े वैश-रू में थे । उदर- प्रेम दूकें मेम- पिन को इयो । . बचन विरह बिज्रा. सुख तोक्की छवि छ । | म्यान जोय बैरार मधुर उपदेसन भायरे } .. भक्कि भाव अभिल्हा मुख्य बनितुन अनु राख्यो । बहु बिधि बियोग संग-सुख सुकत भाव सलु भगत १ . यह अद्भुत प्रेमअदीपि हि अनंत उहित अवङ्गत । | ८३ } मनोहर कवि । थे “हाल मनोहरदास काहा अझर शाह के मुसाहब थे, जैसे कि इन कविक्षर से जाहिर होते हैं। सरोज मैं ही हैं किं थे संस्कृत तथा क्लारस-आइक के बड़े विद्वान् थे ! के क्रासी-शायरी में अपना नाम दोनो” इस्ले थे ! इन क्ष्क्य सं० १६२० ॐ हम है। इन चित बी ६ उदार, अधुर, लुस, अल-का, सरस और प्रशंसनीय है। हम इनकी बाझाबा देण्याचं छीं में रहें हैं। इन्होंने शतश्चक्री-भरकमक एक अंथ भी क्या है। इदा .. | इंदु-अइन नरसि-नयन संयुद्धम्यारे और ;