पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३४५

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द्रौढ़ माध्यमिक- अरू में थे पडत्व को प्राप्त हुए। कुछ हॅनहों का विसर हैं कि ये महाशय जाति के मच्छी थे और इनऊ नाथ महाडी शर, एइ छ ॐ इन्हें सारस्वत ब्राह्मछ मानते हैं । अह दूसरा त दुष्ट सम्म पड़ा है। महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विछेट्रो ने लिखा है कि कमाल कबीर- दास के शिष्य थे और दाइजो माद्ध के शिष्य थे, पर कमाल का अबीरदास का निकम्मः पुत्र होना अधिक प्रसिद्ध है । दरदूी भी क्रोध नहीं करते थे और अब पर दया रखते थे। इस से इनका नाम दयाळ इङ् गया । ये सयको दाढ़ा-दादा कहने के कारछ दाढ़ छहला । ये महाशय बहुत बड़े उपदेशक ऋषि हो गए हैं और इनका चल्लाया हुआ मत दादूपंथ कहलाता है। सुंदरदाय, रञ्ज, होळ,पाथ, मेहनदास, खेमदास आदि इनके शिष्य अच्छे कछि भी थे । दरहू के बनाए हुए पद और यानी इमारे पास हैं, जिसमें इन्होंने संवारने की अखादत्ता और ईश्वर राम-भक्रि के उपदेश सबद्ध छंद द्वारा दिए । हैं । इन्होंने भजन में बहुत बना हैं । कविता की दृष्टि से भी इसकी रचना मनश्र और थार्थभाविही हैं। वह साधारण श्रेस्सी में रखने के योग्य है । ख. १९८२ में इनके ३ ग्रंथ और लिखे हैं {१} दाजी. के अध्यात्म, (२) दादूदयाळ ॐ कृत्य और { ३ ) समर्थइ झ अंग्छ । उदाहरण-- ... . अन रे म बिदा वन छ । अब यह जाइ लिइ माटी में तय हु इसृद्धि क्रीजइ । पारस रस कैंञ्जन रे लौजद्द सहज सुरत सुस्कदाई । माया बैद्धि, ६, ऊद्ध लाचे तार भूलु न भाई ! : अब लगि अावा. किंड है नीय तद लशि तु जिनि भूलइ । यह स्कॅसार खेमर के सुख ज्यः षर हूँ कि फूलइ । औरट यही आनि म जीवन सम्म देखि सच पावइ । अंग : अनेक आज अति भूळ दाटू अनि इहादई ।