पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३४७

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प्रौढ़ माध्यमिक-प्रकरङ ३६१ चैध थे । इनका कविता-झाङ डाँच से ६६३० सं० ॐ हरय कान पड़ा हैं। इनका आदि इलामक ग्रंथ १० फँझ नै ऋष्ठ का हमनें छत्रपूर में देखा है। इनकी रचना की लीझादी हैं । इम इन्हें सुधार यही में इक्वें हैं इंन्नुका दर्हद नादास ने क्व- मार्च ॐ क्रिया हैं। इनका जुगुलशत ग्रंथ लॉज ३६००) ( द्वि० ३० रि०) में लिखा हैं। उदाहरण- दने इन ललितं नृमें बिहार ; अंसी-बुनि, मन्दी लाई आई , गपकुमारी । अर शारु चरन पद र छुट छ तर म । श्रीमद मकट टक लटकन मैं अटके र प्रित भ्यारी ।। १ ८८ बिहारिनिदाङी महात्मा श्रीहरिदासजी के शिष्य थे । इनका कविता-काञ्च संवत् १६३० हैं। इन्होंने 'सखी' अदाई, औसकी एक भी शीको किसी बालाजी ने ॐ } स्वः ॐ ६० छेद हैं, जिनमें से कुछ छोकर शेष दोहे हैं। इस ग्रंथ कीं, टा ५०८६ बड़े ष्टों में हुई। इन्होंने ११६ वर्दी झा एक दूसरः श्य रचा । ये ग्रंथ छत्रपूर में हैं। इक्की रूना साधारण अंक में हैं। द्वितीय त्रैवार्षिक खोंज में इन १ ग्रंथ म-प्रबंध मिला है। उदाहरू-- कुकर चौक चटाइए चाक्री अटल जाय । श्रीहरिदामन पीठ हैं औक्त झाचत धाय ।। आकों सदका खाइए ताही की रि अस; जाके द्वारे झाले टाके आस पास } साधन सबै प्रेम के तरु, हरि । निकलते उन प्रगट अंकुर अर पात पुरले परिहर । सुन लुनि भई दास की असा इरस्य परस्य भावै ।