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मिश्रबंधु-विनोंद

विधु-बिनोद इन्त्र दर तज्ञ बन्यो चाहै होलै हू हैसि ३ । बिट्टद्ध विपुल के पीछे हरिदारू स्वामी की गद्दी के अधिकार हूर है नाम–१ ८६ } नारीदास श्रतिबनचंद्र के शिष्य । अंथ----१ सय-प्रबंध, ३ समय-प्रबंध है। कविहङ्कङ्ग ---१६३६ } विवरण---इनके प्रथम ग्रंथ में सात समय की सेवा का बयान है, तथा अन्य महात्मा ॐ द संगृहीत हैं। उस में विशेषतया श्रीइितहरिवंशी के पद हैं। इसी प्रकार रयल अपेज़ी १२३ पृष्ठ का है। द्वितों में स्वयं इनकी रचना है, पिझैं कुल ३३१ पृढ़ हैं। इनके ६३५ दई भी बड़े भाव-बुक्ल तथा गंर हैं । कविता इनकी प्रशंसनीय है । हम इन्हें तप की श्रेणी का कवि मातें हैं । ये अथ हमने दरवार छत्रपूर मैं देते हैं । ये हित-संप्रदाय में थे। इदाहरु]-- में झूमत हथिया मद की है । पिय हिय हिलसि पर पर स्ख कर मैयत अपनी सदौ । सुरति नदी मजादा ढाहत मन गुमान अनुराग्य उजद की ; नारिदास बिनोद मद मृदू आनँद बरे ब्रिहार बेहद कौ ।। | प्यारी जरी कै तनु भरत ।। बं% थिसाल छीले खोचर भ्र, विलास चित चोरते है। कनक-खत-सी ठाढ़ी बन अह डं। अगरत है। उघटी वर कुच तट पटीं हैं छबि सरयदहिं फौरत । अति इस चिक्स पियहि र हावत केडि कॉल करत । नागरिया स्त्रितादि निरखि सुख लै क्खाय तिन तरित । .. : इस समय के अन्य कविगण शास-- मुनि आनंद .. ...।