पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३५

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भूमिका (२) . अब हम उन सज्जनों को धन्यवाद देकर इस भूमिका को नहीं पर समाप्त करेंगे जिन्होंने हमें इस द्धितीय संस्करस के ठीक करने एवं वर्तमान काल तक खाने में अच्छी सहायता दी है। हमारे प्राचीन मिन और हिंदी-अगत् के सुपरिचित स्वर्गीय कवि गोविंदगिल्लामाईशी ने काठियावाड़ से कवियों और गद्य-लेखकों की विवेचना-सहित एक वृहत् सूची भेजी जिससे प्रायः ५०० अज्ञात लोगों का हमें पता चला । श्रीयुत भास्कर रामचंद्र भालेराव ग्वालियरनिवासी ने गुजरात, महाराष्ट्र, बुंदेलखंड इत्यादि प्रांतों के १००-१५० कवियों के विषय में बड़े असल्य लेख भेजने की कृपा की। वृंदाचन के नीहित रूपलाल गोस्वामीजी ने उस प्रांत के कवियों के संबंध में बड़ी सहायता दी एवं ४०.१० नए नाम विवेचना-साहित दिए। श्रीभवानीशंकर याज्ञिक से अनेक कवियों के समय स्थिर . करने तथा एक ही कवि का दो-तीन बार दोहराकर नाम श्रा जाने से बचने में विशेष सहायता मिली। अन्य अनेक महाशयों में भी थोड़ी बहुत सहायता दी। हम इन सभी महानुभावों के विशेप ऋषी हैं और उन्हें हार्दिक धन्यवाद देते हैं। अंत में यह भी लिख देना उचित है कि प्रिय दुलारेलाल भार्गव एवं चिरंजीव कृप्स्यविहारी मिश्र ने इस संस्करण के संपादन में बड़ी योग्यता एवं परिश्रम से काम किया और कर रहे हैं जिसका साधुवाद देना हम अपना कर्तव्य समझते हैं। यदि यह संस्करण हिंदी-मर्मज्ञों को कुछ भी . रुचिकर हुआ तो हम अपने को बड़ा भाग्यशाली समझेंगे । गणेशविहारी मिश्र लखनऊ . मार्गशीर्ष, कृष्ण १३ श्यामविहारी मिश्र शकदेवविहारी मिश्र संवत् १६८३ "मिश्रबंध"