पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३५९

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ग्री; सुभअङ ३३१ हुए थे । आप बड़े विद्वान् न थे, परंतु विद्वानों का सत्सं रखते थे । झाईअकबडी-नामक प्रसिद्ध ग्रंथ आप हैं के विचारों का संग्रह है। आप इरबार में बहुत से हुई और मानः पुग्न एकत्र में, किन कई हिंदी-कवि भी थे । अपने संवत् १६६३ लेक राज्य किया सकें झाड़ के आदि में बत् बाछड़ था, पहंदु औ वर्षों में अपने चतुरता अचं कौशल में इसे शांत कर दिया । अपि हिंदी-कविता भी करते थे, जो साधारण श्रेणी के हौली थी। आपके अदि में विद्वान् न होने तथा ग्यारंभ के सम्मुस राइ ३ रहने से अनसान रेतर है कि १६३१ के पूर्व अपने इतनी हिंदी में सीख पाई होगी कि उस भाषा में छंद-श्चनकतै । अतः अायका रश्चन- १३३१ से १६६६ तक समझ पढ़ता है। इदाहरण- जानें कह है जगत मैं मार सुशहूँ मई ! . ताऊँ क्न सफह हैं कहत अन्य साहि . सोहि अकबर एक समै अॐ ॐान्द्र विसौंद बिलौच, हिं । अझट वें अवदा नियों इक कि चलँ! करि अातुर झालाई । त्य बड़े बेनी सुधरि धई। सुभई छदि यों ललना अरु लालहिं । चंपक अरु कमान चट्टोवह कम ब्यों हथ थिए अहि त्वाई। केद्धि करै बिरईत र सु अकबर क्यों न तो सुख शा३ । कामिन की कटे किंकिन काम किधी मन पीतम के गुम्, गादै ।। बिंदु असेट में छूट झट हैं यों बेट में बट जयि अवै । साहि मचोक मनी स्थित मैं छवि इंद लयै क्ष्क होरि लिखावै । १४० } भगवान् हित । इद महाशय का बनाया हुआ कोई अंध हमारे देखने में नहीं यः श्रीहित-संप्रदाय के अनुयायी थे । इनके अनार दुर दुश भजन मुंशी नवलकिशोर सी०आई० ई० के बैंस द्वारा मुद्रित पूरसह पर .