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मिश्रबंधु-विनोंद

मिबंधुविनोद में मले। उससे ज्यान दिदा है कि ये महाशय आफ्ना नाम जन्म भारवाई अंडर हिंत भगवान् करके लिखते थे और वल्लभाचार्य के पुत्र बिंदलदान के भी पृज्य मानते थे। इनके पदों से भक्लि पकती है। इन्होंने नख शिवा भी अच्छे ऊहे हैं । भगवानदास-नमक एक महाशय का दम दि स्त्रोदात्वी सन् १६०० की रिपोर्ट के ६२ पृष्ठ पर भी है, परंतु वे संच १७३५६ में हुए थे, अतः इनसे पृथक् थे । इनके पदों में अच्छा मधुरता पाई जाती है । इन्हें तोए कवि की श्रेणी में। रक्लगे । इनका कर्मचा-झाले १६३३ के बगभग है। बढ़ावा -- | मुटुमत आनंदकंद नचावति ।। | पुलकि-युद्धकि हुलसति देखि सुख अति सुख-पुंजड़ पावहिं ।। बाट जुवा इद्धा किंसोर मिल चुटकी दै- गावति । नूपुर सुर मिश्रित धुनि उपजति सुर दिरंचि बिसमाबसि । झुन्वित ग्रंथित अखक मनोहर झयक बदन पर आबति । जन पचान मन धन विधु मिलि बँदिन भकर बंजाल । । १४१ } सेक . . ये महाशय बिट्टद्धनाथ के शिष्य थे। इनका कोई ग्रंथ देखने में नहीं आया, परंतु इनके बहुत-से फुट भजन हमारे पास हैं। इन्हों- ने पदों में श्रीकृष्ण-लीला' का वहन किया है, और उसमें भी बाल- लीय एवं भंगार-वन का प्राधान्य रखा है। ये साधारण अशी ॐ कवि थे। इनका कविता-काल १६३१ संवत् के लगभग है। रसिकास और सिकराय नमः । श्रर कवि ग्रंथकल हुए हैं। रंतु उनकी कविता इनकी से पृथक् है । उदाहर-- '. अटकलं चैवतं कुंजभंबच है। " • ऋफिर-हरे परत राधिका ऊपर जागर सिथिल्ल यवन ते ।।