पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३६१

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प्रौढ़ माध्यमिक अश्या चक्र पर कबहूँ मार विच चले सुगंध पद है ; . . भए उखान्य भरम घर के सकुचत दुवै प्रश्न ते }. आळस अस न्यारे न होत हैं नैकडु प्यारी-तने ते ; रसिक टरै अनि दस स्याम की बहूँ मेरे मन ले । नाम -{ १४२ } अग्रदास लता जयपूर । ग्रंथ–(१) श्रीरामभजनमंजरी, कुंडलिया, ३) तिथिदेश भाजी, १४} उपासन? बावन, १५} ध्यानमंजरी १६} पद। झविताकी--- १६३२ ।। विवरग्य---- महाशय नाभदास के दुक थे ! इनका प्रथम ग्रंथ हमनै छुन्नपूर में देखा है ! मैं तोष की श्रेणी में हैं। इनर समय नाट्रांस के विचार से रखा गया है । “शम चरित्र ॐ पद” नामक इनका एक और अँधः उहाइख- कुंडल खरिदक्ष पौ जुगुछ अस्वा परम सुदेसा ।। दिनक्री निति प्रकाश लत शर्केल दिनेंसः ।। मैचक कुटिल बिसाहू सरह नैन से हाथ । मुक्ष-पंकज के निकट मनो अजि-छीना आए हैं। (१२) गद्धाधर भट्ट ध क खमय १६३३ ० १६७६ ॐ खेज में मिला है। पहें अपृका ३६ १२७ तथा समय १७२२. लिनी से मारना मल्या था ; आप चैतन्य महाभॐ गो-संप्रदाय ॐ वैश्व चै 14 अकई छ नी । अंथ} इमर्ने छैर में देखें। जिवी रचना बड़ी सहावी है । इस इन्हें पद्मा की अध में दुखते हैं।

  • नृ० १० खोज में इनका एकै और ग्रंथ घ्यन्तीद्धा-नामक मिला है।