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मिश्रबंधु-विनोंद

मिश्रबंधु-विनोद काल संवत् १६०६ के इधर-उधर माना है, सो बलभद्रजी कष्ट न्मक्काल संवत् १६०० के लगभग मानना चाहिए । इनका केवल एक ग्रंथ नख-शिव हमने देखा है, और खोज में इन भागवत भाष्य-नामक द्वितीय ग्रंथ का नाम लिखा है । नख शिख मैं ६५ घनाक्षरी छंद और एक कृपय हैं। इसमें सन्क्त् का कोई ब्यौर नहीं दिया गया है। यह एक बड़ी ही प्रौढ़ ग्रंथ है। अतः अनुमान से यह कचि झी कुछ बद्धी अवस्था में, संवत् १६४० या १६१० ॐ खग- ग, बना सृा। इसके देखने से जाना पड़ता है के बलभद्र एक बड़े ही सुकवि थे । इसमें कविं ऋचार्यों की भाँति चला है और इसके छेद बढ़ गंभीर तथा उत्तम हैं। इसकी भाषा परिपक्क शुद्ध व्रजभाषा है। इसमें उपसाएँ बहुत अच्छी दी गई हैं। नृप शंभु ॐ अतिरिक्त बलभद्र झा नखशिख भाषा-साहित्य के समस्त नख-शिखों से बढ़कर हैं। इस एक ही छेटे-से ग्रंथ के रचयिता होने के करना बलभद् कः गन्ना दास कवि क श्रेणी में होनी चाहिए । गोपाल कवि ने संवत् १८९१ में इस ग्रंथ की टीका रची । उसमें उन्होंने लिखा है कि बलभद्र रूचि ने बलभद्री व्याकरण, हनुमटक टीका, गोवर्द्धनसतसई टीका आदि कई ग्रंथ रचे । द्वि० चै० खोई मैं दूषयविचार ( १७१४ ) नामक स्क और ग्रंथ मिला है । संभवतः इन्हीं का रचा ज्ञात होता है। इनकम केवद्ध एक छंद हम ३ लिखतें हैं--. .. पाट नयन झनद से इल दौक, .. बलभद्र कसर उनीदी ला आळ : सौभा के सरोवर में बाड़द की आभा कि, | .. . देवधुनि भारती मिली है पुन्य काळ मैं। ..::..:. कास कै अश्या कै सिक्का उडुप बैठ्यो ।' | .:: खेत सिर दरुनी के सुख-ताद्ध मैं ; ;