पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३६९

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ग्रौढ़ माध्यमिक-कश्छ । बरु झिंख देय व खाय, माद खडित भरि फल । । हिंमन रहिला के सली, ओ पर चिलु लाग्छ । परस्त मन मैला **, सो मैदा आरि जाय । इनको बढ़ की हुशायद इतनी प्रेय था कि ये उनकी अयस्य प्रशंसा को सहन नहीं कर सकतें - था कि बड़ेन ङ्की बड़ी बड़ाई हो ? ज्ञ रहीम हनुमंत ॐ गिरिधर कई न कोय । इनके दिर की ऊँचाई र भीरला दिन ही है वदित छोड़ रहीम अनि कह के हर गम् छिन्नाथ संपति के सच जात हैं बिपति सबै ॐ साथ । संप्रति संपतिवान सई होऊ न देत ; दीनबंधु बिद दीदी को इहीम सुधि है। काम ३ झाडू आबई मौद्ध रहीम न लेइ । बाजू इंटे बाज को, साहेब चारा देइ ।। भूप सनत लघुगुनिन , सुनी बात बघु भूप । • रहिमन गरि तें भूमि लौं, खी तो एकै रूप । दान लेना श्री राम निंद्य सम्झनें थे- रहिमन माँगत बर्डेन की धुता हीत अनुप ; बलिं मंसू माँन हुई म धरि थान छ । इन्होंने बहुत स्थानों पर ऐसे यथार्थं चोझ निकालकर इश दिए हैं, जिनकी अथार्थतः ॐ भए एक निराला ही आनंद आता है--- चैर सून खाँसी रूसी बैर झीति मधुपाद । रहिमन दाये ना दधैं अरसे सड़ अहान ।। रहिमन बदर बाज़ ने हैं फिर क्यों तिरै ! पेट अधर्म के झा र इ ईधन परै ।