पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३७

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भूमिका . (प्रथम संस्करण की) ग्रंथ-निर्माण दिसंबर १९०१ (संवत् १९५८) की सरस्वती पत्रिका में हमने हिंदी-साहित्य इतिहास-विषयक एक ग्रंथ बनाने की इच्छा प्रकट की थी और यह बात पृष्ट ४३० तथा ४११ पर इस प्रकार कही गई थी "हनने भाषा के उत्तमोत्तम शत नबोन और प्राचीन कवियों की ऋविता पर समालोचना लिखने का निश्चय किया है और उन पालोचनात्मक लेखों के आधार पर हिंदी का जन्म और गौरव था अन्य किसीसे ही नाम की पुस्तक निर्माण करने का भी विचार है। इसमें हिंदी में उसके जन्म से अद्यावधि क्या-क्या उन्नति तथा प्रवत्ति हुई है और उसके स्वरूप में क्या-क्या हेर-फेर हुए हैं, इनका वर्णन किया चाहते हैं । यह कार्य समालोचना-संबंधी प्रथों के बहुतायत के प्रस्तुत हुए विना और किसी प्रकार नहीं हो सकता। इसी हेतु हमने समालोचना करने का प्रारंभ किया है और जब शंकर की कृपा से एक सौ उत्तमोत्तम कवियों की समालोचना लिख जायगी, तब उक्र ग्रंथ के बनाने का प्रयत्न करेंगे। अपने इस अभिप्राय ओ हमने . इस कारण विस्तारपूर्वक बतलाया है कि कदाचित् कोई सुलेखक हमारे इस विचार को उचित समझ कृपा करके समालोचनाओं द्वारा हमारी सहायता करें, अथवा स्वयं उस ग्रंथ के निर्माण करने का प्रयत्न करें। यदि कतिपय विद्वज्जन हमारी सहायता करेंगे, तो हम भी अपने अभीष्ट-साधन ( उक्त ग्रंथ के निर्माणा) में बहुत शीघ्र सफलमनोरथ होंगे, नहीं तो कई वर्ष इस कार्य में लगने संभव है।"