पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

३३१ हैं रहीम अन आपले की छु । निस बासर लाग्यो हैं झूझचंद्र की अन । रमिल के छ को ब्रै ज्वा चौर ऊचार । ओ पति लनहार है माम्बन . चाखनहार है। भी मकर न को र केहि न त्यागिन् साथ। सुश आरे सुख ढों में रहीम रघुनाथ } इन्होंने नीति ॐ भई यहुत ही उत्तम चुनिंदे दोहे लिखे हैं और संसार ने उन्हें इतन्या सैद झिया कि प्रयः ॐ सभी विदेत्तियों के रूप मैं कहे जाते हैं- फरजी साह न है. सॐ ति दे तासीर हिंमन सुधी चालु ने याद होंत ।। छिमा अदेन के वाहिर छोटे ३ को इतात ; '..: छा इहीम हरि ॐ वय झ झार अारी छ । हिमान बिक्री आदि ड्री नै नू सरचे दम । . . हरि बाड़े आकाश . छु । बाक्न नाम । चश्त के किं ३ इंच शुइ मत --- - रहिमन बिपी हूं भर्ती थोरे दिन हो । ' हिल अनहित या जनर में बानि पहल सर्व कर | सत्संह और कुचंना पूर भी इन्होंने इहु जोर दिया है---

‘कले। उ अर्ज मुख छाँति छ कुन लीन्न ।

कैसी संत दैठिए हैंई कुल कीच वै । रहिमन बीमा प्रसंग को लत स्कः कहि ; दूध कृत्वाई र हे सदहि है सच तहि । नीति आदि पर विशेष ध्यान रखने छह भी इन्होने कन्धों की हाथ से जानें नहीं दिया है । इषक चना मैं यत्र-तत्र चित्र-काय भी मिला है, परंतु उसमें भी इन्होंने उपदेश वहीं छोड़े हैं- •