पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३७३

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ग्रौढ़ मूल्यक्रिया इच । इस्तका नाम लञ्च में लिखा है, पर इसके अतिरिक्त इनके विषय में कुछ छीन नहीं पड़ा। शाम-( 1४६ } लालदास { बल्द ऊधौदास ) बनिया, भाग १ ग्रंथ (१) महाभारत इतिहाससार । १६४३ } खज १६०२ {२} बढि-बदन की कथा १ झ ३० रिं०}} समय ----१६४३ ।। विक्र—-महाभारत की कथा को सार । १ १५०) अनंतदास साधु मझाराज अनंतदासजी नै संवत् १६४५ के जगम कविता की । इन्होंने नामदेव आदि की परची-संग्रह, गोपाज की परची, रथदासजी र परची, रंका चैक की परची, कबीरको कई पच्ची, सिमा बाई की परची, समनखेडी । पर और चिंचोक्नासज्ञी की परची-नामक आठ ग्रंथ बनाए, जिनमें भक्कों के यर्छन किए हैं। इनमें से प्रथम और द्वितीय ग्रंथ १६४५ और ६ ६१७ में बने थे । इनकी रचना साधारव्य श्रेणी की है। उदाहर--- अंतरामी बरनउँ वहीं ; साधू संग सदा दे नही । माँग भक्ति जु ब्रह्म गियाना; - चितॐ परमाना। संक्त सोळा हैं. वैताळा : दादी थौद्ध वचन रसाळा । अंतरजामी शु? दीन्हीं | दास अनंत क्या कर सोन्ही ! . . . १५ १} रसखान .... इनको बहुत बड़े सैयद इहम पिहानाबै समझते हैं, परं तु वास्तव्य में थे महासय दिल्ली के पठान थे, जैसा कि २५३ बैचों की वार्ता में लिया है। इन्होंने ग्रैमार्टिका' पंथ संवत् १६७ ६ नै बम्द था । इसमें थोड़े ही दोहे हैं, परंतु ग्रंथ परमोचम