पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

। ३३१ द डॉक्छ इस बात से देवों का धर्म-संबंधी औदार्थ प्रकट होता हैं । बश्तों में यह भी लिखा है कि रस्सहान ३ अनेक र्तन और कजिन-दोहे बनाए । इनके भजन हमारे देखने में नहीं आए। भारतेंदुज्जी ने भी उत्तर अक्लमाद्ध में इनका अश गान किया है । पुं० सधचरस्य गोस्वामी ने भी नई भक्कभाल में इनकी प्रशंसा इस अकार की है. दिल्ली नगर निवास यादसा बेस बिमाकर ।। ...: चिञ देखि मन इसे भरी पद शेन सुझाकरे । श्रीगोदर्द्धन अन्य जेई इरशन नहिं पाए । तब आप अाय सु मनाई कर 'सुश्रुषा अमान की | • कृयि न मिताई कहि सके (श्री नाथ साथ उसस्लाम की । इनके ‘प्रेमबटिका' और 'सुजान रसंस्कान'-नमक द ग्रंथ कीं। स्कन कोईलाड़ी ने प्रकाशित किया है, जो हमारे पास बर्दन हैं। प्रथम में केवल १२ दोहे एच रहे हैं, जिनमें शुद्ध, श्रेम का बड़ा ही उत्तम रूप दिखाया गया है। उसमें अपने अपने अंश के क्ष्यि में भी कुछ लिखा है। विषु सागर रस इंदु सुने बरस सरस रस क्लानि ; प-अदि रचि चे चिर हिय हर बने । - द. पतरो अर्ति दृर म कटिल छ है सदा । ईन्छ इस अरर छ में पत्रं छान्यो रे । दंपति सुरू अरू विषय में जा निष्ठा . यावा ।। इगते परें ऋग्वानिए शुद्ध प्रेम राम ।

सत्र अत्र सुर्यधु सुतं इन सहर्ष सह ।

... शुद्ध इनमें नहीं अब्ध क्या सवितै २. श्री विनु कारनहिं इस सदा समान ।