पृष्ठ:मिश्रबंधु-विनोद १.pdf/३७७

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प्रौढ़ सायाभि-कप्त ॐ खग हौं सौ बसेरों क इ कहिँदी-कुल कदैन कि अग्नि । था डकुटी अरु कमसरिया पर राज तिहू पुर की तर्ज हुए । अठहू सिद्धि नौ निधि की सुख नंद की गाय चाय बिसौं । टिन ए कलधौत कै बाम छोर के कुंडन ऊपर बा । रसखानि सदा इन नैनन सों ब्रज के बन ड्रीम् तड़ाग लिहारौं । अँखियाँ अँखियाँ सो काय मिलाय हिबश्य रिझाथ थिभर । बतियाँ चिस चोरन चेटक-सी र चारू चरित्रने चारे । हानि के प्रान सुधा अरबों अधच है त्यों अध। धरिबौ । इतने सब मैन के मोहन जैत्र ६ मंत्र बीर की करिने । इस समय के अन्य कबिंगुण : : नाम--१ ११३) झल्यानइाल भ्रमवासी । । छविताकाल-३६३२ । विदर-इनके पद सागौद्भव नैं हैं । साधारण अंगीं । नाम-५ ११३) कैलम व्रजवासी। कदितकाल-१६३२ } विर---साधारण श्रेस्यों ।। दाम-( ११४ } गदाधरदास वैष्णद इ दादन ।।. • निताकाल-१६३२। विक्रमा-कृष्णदास के शिष्य थे । नाम-{१२५ } गमग । कविताकृति-१६३३।। लिख— अकदर झा के दरबार में थे । नाम--{ ११६ ) देवा उद्देपुर : राजपूतानी । कक्तिकाल-६६३३ ।, विवरण-साधारया श्रेणी .१ .:

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