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मिश्रबंधु-विनोंद

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मिश्रबंधु-विनोंद इ निश्चयानुसार हमारा ध्यान समालोचना की और रहा। संवत् १६६२ के लगभगः भूप की रचना पर एक समालोचना हम कौर ने अयपुर के समाजचक पत्र में छपवाई । उसे देखकर काशीनागरप्रचारित सुभा ने भूपण-ग्रंथावलों की संपादन-झार्थ हमें सौंपा। संवत् १९६४ ॐ लगभग सभा ने हमसे प्रायः २०० पृष्टों का एक साहित्य इतिहास लिखने की इच्छा प्रट की ! उस समय हम झालिदास-कृत रघुबंश झा पद्यानुवाद कर रहे थे । उसे छोड़कर हमने समालोचना लिखने का आम उठाया, जो एक वर्ष तकृ तो निर्विन चलता रहा, परंतु फिर ढाई वर्ष पर्यंत उसमें शिथिलता रहीं, और हमारा ध्यान रूस और जापान के इतिहास एवं भारत-विनय-नामक पद्यअंथ लिने की कोर चला गया । ये ग्रंथ इन्हीं ढाई वर्षों में समाप्त हुए, जिनमें से रूह तथा अपान के इतिहास प्रकाशित भी हो गए हैं। ग्रथम हिंदी-लाहिंत्य-सम्मेलन के समय विषय-निर्धारिणी समिति में, हिंदी साहित्य के इतिहास के विषय में वादविवाद हुआ और समिति ने इसके शंत्र दर्न जाने की इच्छा प्रकट की । उक्न समिति के इम भी सभासद् थे, सो अपनी अकर्मण्यता पर हमें ग्लानि हुई । उसी समय से इतिहास का कार्य फिर पूर्ण परिश्रम से चलने लगा और संवत् ११६८ में ग्रंथ बनकर तैयार हो गया, केवल अंतिम अध्याय में कुछ बढ़ाना एवं भूमि का दिखना शेप रह गया । संवत् १९६३ के मई मत नैं छुट्टी लेकर हम लोगों ने यह अर्थ भी समाप्त कर डाला है। प्रकाशन एड्दै हम यह अंथ संक्षेप में लिखना चाहते थे, परंतु धीरेघी इस अाक्रार बढ़ता गया । तब हमने नव सत्कृष्ट कवियों से संबंध रखनेवाले खेत 'हिंदी-नवरत्न' * के नाम से प्रयोग की ॐ हिंद-नवरत्न का द्वितीय, संशोधित संस्करण भी अव गंगा-पुस्तकमाला